

श्रद्धयां इदम श्राद्वयं:श्रध्दा से किया गया कर्म ही श्राध्द है –
धर्म श्रद्धा का विषय है तर्क-वितर्क का नहीं . कुतर्क का तो हरगिज़-हरगिज़ नहीं .इन दिनों हम हिंदुओं का महत्वपूर्ण धार्मिक कर्मकांड श्राद्ध-पक्ष चल रहा है. ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पर श्रद्धा पूर्वक श्राध्द कर्म करने से पितर सन्तुष्ट हो कर हमें अपने आशीर्वाद प्रदान करते हैं.ऐसी मान्यता भी है कि हमारे पितर कौआ के रूप में आकर भोजन ग्रहण करते हैं. जिनकी आस्था है वे इसे करते हैं जिनकी आस्था नहीं हैं वे इसे अंधविश्वास और पाखण्ड मान उपहास करते हैं.इस मामले में संत कबीर ने समाज को खूब खरी-खोटी सुनाई है .
हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच-समझकर इस कर्मकांड की शुरुआत की होगी .ताकि लोग अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ रहें .और जो परिवार में बुजुर्ग हैं उनका भी ख्याल रखें .इसीलिए उन्होंने उद्घोषणा की होगी कि पितृ देवो भवः, मातृ देवो भवः .लेकिन समाज में बुजुर्गों की जो दीन-दशा है वह किसी से भी छुपी नहीं हैं. हमारी फिल्में और साहित्य सच का जो आइना दिखाते हैं उसमें समाज बदशक्ल दिखाई देता है. अमिताभ बच्चन जी और हेमा जी अभिनीत फिल्म “बागवान ” समाज का कड़वा सच है .
प्रेमचन्द जी की कहानी ” बूढ़ी काकी ” एक हिन्दू परिवार की कहानी है तो उनकी ही ” पंच परमेश्वर ” कहानी में जुम्मन शेख की बूढ़ी खाला अपनी उपेक्षा और अनदेखी की शिकायत के लिए पंचायत बुलाती है .गोयाकि बुजुर्गों के उत्पीड़न में सभी धर्म समान हैं.हम स्वम् साक्षी हैं कि परिवार का मुखिया उम्र बढ़ने के साथ ही कैसे केंद्र से किनारे की ओर धकेल दिया जाता है.हमारे साथ भी ऐसा ही होने की आशंका है!!
हिन्दू समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो अपने तर्कों से धर्म के हर कर्मकांड को विज्ञान सम्मत बताने की कोशिशें कर रहा है .कई बार तो वह ऐसा करते हुए हास्यास्पद स्थिति निर्मित कर लेता है .कल फेसबुक पर एक पोस्ट थी जिसमें बताया गया था कि हमारे पूर्वज कितने वैज्ञानिक थे जिन्हौने श्राद्ध में खीर खाने का प्रावधान किया .ऐसा इसलिए कि इन दिनों मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है और लोग मलेरिया बुखार से ग्रस्त हो जाते हैं लेकिन मीठी खीर मच्छरों के जहर को मार देती है .
मेरा निवेदन सिर्फ इतना है कि यदि आपकी श्रद्धा है तो आप श्राद्ध कर्म विधि-विधान से कीजिये .यह हिन्दू धर्म की बहुत ही खूबसूरत मान्यता है .इसे मानिए .लेकिन इसके लिए दुनिया की नज़र में हँसी-मजाक का पात्र बनने की जरूरत नहीं हैं. और न ही हमारे किसी भी रीति-रिवाज ,मान्यताओं के लिए किसी वैज्ञानिक साक्ष्य की ही आवश्यकता है .
कुंडली में पितृ दोष का भय मत दिखाइए .हो सके तो जो देव तुल्य बुजुर्ग अभी साक्षात हमारे घरों में हमारे साथ हैं उन्हें खुश रखिये उनका ध्यान रखिये.और यदि अपने पर्यावरण से प्रेम करते हैं तो निरन्तर घट रही कौओं की संख्या पर चिंतित होइये .पितरों की स्मृति में पौधे लगाइये .हमारे पूर्वजों की मूलभावना का सम्मान कीजिये।
– सुरेंद्रसिंह दांगी,
अध्यक्ष पंचतत्व संरक्षण समिति
गंज बासौदा.

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
