

पुस्तक चर्चा :
पुस्तक – ऑनलाइन संस्थानों का सच
लेखिका – श्रीमती सुनीता जौहरी
मूल्य – १६०/-
प्रकाशन – जौहरी पब्लिकेशन, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
यह पुस्तक एक सच्ची घटना पर आधारित है और किसी भी सत्य घटना पर लिखी गई कहानी के साथ न्याय करना बेहद कठिन है लेकिन आ. सुनीता जी इस कार्य में शत प्रतिशत सफ़ल रही हैं।
कोरोना काल में जब सभी घर में बंद हो गए और काव्य गोष्ठियां भी ऑनलाइन होने लगीं तब फर्जी संस्थाओं की बाढ़ सी आ गई। इस तरह की संस्थाओं के पदाधिकारी केवल आपका नंबर मिल जाने मात्र से ही आपके पीछे लग जाते हैं और जब आप से उनका काम निकल जाता है तब आपको दूध की मक्खी की तरह संस्थान से बाहर निकाल फेंकते हैं। ऐसी ही एक घटना पर ये कहानी सुनीता जी ने लिखी है।
एक और विकट समस्या जिससे हर महिला जूझती है और जिसका ज़िक्र इस कहानी में है वो है महिलाओं के साथ किया जा रहा अभद्र व्यवहार।
इस तरह की घटनाएं चिंता का विषय हैं। हिंदी साहित्य की पहले ही हानि हो रही है। नई पीढ़ी हिंदी पढ़ना ही नहीं जानती लिखेगी क्या, उस पर इस प्रकार की घटनाएं साहित्य क्षेत्र से लोगों का विश्वास डिगा देती हैं। कौन सोच सकता था एक दिन कविता और कहानी के नाम पर भी ठगी हो सकती हैं मगर कुछ लोग केवल अपने स्वार्थ के लिए पूरे समाज का नुकसान कर रहे हैं।
इस कहानी की नायिका नीता के माध्यम से सुनीता जी ने पीड़िता की वेदना को बखूबी व्यक्त किया है। भावनाओं का जो ताना बाना उन्होंने बुना है वो काबिले तारीफ़ है। जिस तरह साफ़ और सरल शब्दों में बिना किसी लाग लपेट के उन्होंने पूरी बात व्यक्त की है इस से उनकी सशक्त लेखनी का परिचय मिलता है।
इस कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण पात्र है, प्रज्ञान। प्रज्ञान के बिना इस कहानी का सकारात्मक अंत होना मुश्किल था। ये किरदार इस बात का सबूत है कि मुसीबत में सच्चा दोस्त ही साथ देता है।
कुल मिलाकर यह एक खूबसूरत कहानी बनकर निकली है। आप सभी इसे ज़रूर पढ़ें।
चर्चाकार
गीतिका सक्सेना,
मेरठ, उत्तर प्रदेश।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
