

लघुकथा
शरणार्थी दिवस
“क्यों ? हर बात को, हर दिन को मनाना,,, जरूरी है क्या ?”
“हां भाई ! जैसे माता दिवस ,पिता दिवस ,वृक्ष दिवस ,पर्यावरण दिवस !”
“क्या ऐसा ही है यह शरणार्थी दिवस ,,आज 1951 से मना रहे हैं ,,,70 साल हो गए! हो गए न! क्या कुछ कहना चाहते हैं हम या हमारी सरकार? उनकी स्थिति सुधर गई है या जल्द ही सुधर जाएगी ?”
“ऐसा ही कुछ समझ लो !”
“ऐसा ही समझ लो यानी ,,,अक्षमता,असफलता,उदासीनता की कोई लाज नहीं,,कुछ सुधार नहीं हुआ,,कोई प्रयास नही ,,जब जो मन आए मान लो,,या जो तुमसे करते बने कर लेना!कोई घर ,ठिकाना ,शिक्षा भोजन ,सुरक्षा दे पाए उनको इस दिवस को नियम से बीस जून को मनाने के अलावा?”
“अरे भाई !तुम तो बड़ी तीखी बात करते हो ! तुम्हारा कोई जवाब नहीं है मेरे पास!”
– आर एस माथुर
इंदौर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
