काव्य : मैं न करूँ मुकाबला – रीतु प्रज्ञा दरभंगा, बिहार

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मैं न करूँ मुकाबला

करती हूँ
कर्म में विश्वास,
नहीं रखती कभी
मुकाबले से आस।
भाता नहीं
करना किसी से मुकाबला,
आती हैं इससे सौ बला।
उड़ जाती है नींद
इसके तनाव में ,
मिलता नहीं सुकून
किसी के खिंचाव में
सबके साथ हिलमिल रहना,
गप्पें मारना,
दोस्तों संग टहलना,
हैं जिंदगी के अनुपम पल
हिय बसी यही पहल।
जिंदगी के इस वृक्ष पर
आया यौवन ,चला गया
घृणा,द्वेष रहा नहीं
संसार खुशियों की
बसाती रही यहीं।
सत्य,प्रगति मार्ग पर
बढते जाना निरंतर
नियम पर चलती रही।
रहे होंठों पर मुस्कराहट
सोच यही प्रबल रही।
न हुआ
अपना-पराया का ज्ञान ,
करती रहती कोशिश
माता-पिता, गुरुओं का
सदैव बढे मान।

रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार

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