लघुकथा : राह न सूझे – ज्योति जैन इंदौर

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लघुकथा

राह न सूझे

बेहाल परेशान दीनबंधु मंदिर की चौखट पर खड़ा बुदबुदा रहा था। पंडितजी ने परेशानी भांप कर उसका हाथ पकड़ा और प्यार से पूछा- क्या बात है बेटा…? कोई परेशानी है …?
“क्या बताऊं महाराज…! कोई राह नहीं सूझ रही। दीनबंधु रुआंसा था।
” यह है ना जगतपिता…! पंडित जी ने भगवान की मूर्ति की ओर इशारा करके कहा- यह हमेशा राह दिखाते हैं बेटा..! सब अच्छा ही होगा।
उम्मीद के साथ दीनबंधु ने मंदिर की मूरत को देखा और नतमस्तक हो गया। न जाने क्यों उसे लगा जैसे ईश्वर ने उसके सारे विघ्न हर लिए हों।
शाम को दफ्तर से लौटते हुए दीनबंधु ट्रैफिक में फंस गया। आधा घंटा हो गया जाम में फंसे हुए।पैदल आते-जाते लोगों से माजरा जानना चाहा तो पता चला बीच रोड पर स्थित मंदिर को हटाने के लिए प्रशासनिक अमला आया हुआ है। मंदिर अतिक्रमण की हद में होने के बावजूद लोग उसे हटाने नहीं दे रहे थे। लोगों ने बताया इसी वजह से जाम लगा है।
हैरान दीनबंधु सोच रहा था- भगवान राह दिखाते हैं या राह रोकते हैं..!

ज्योति जैन
इंदौर

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