काव्य : हरितालिका व्रत – अंजनीकुमार’सुधाकर’ बिलासपुर

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हरितालिका व्रत

कर हरित ले गईं अलिकाएँ
दुरुह अरण्य गह्वर प्रदेश में;
पार्वत्य कुमारी अनुष्ठान कीं
शिव को पाने पति भेष में।

ढूँढ थके राजा हिमवंत थे
पुत्री पार्वती सखी संग गुमी।
पतिव्रत तप करने निर्बाधन
चूनी थीं सखियाँ गुप्त भूमी।

तृतीया का दिन शुभ आया
बालुका लिंग स्थापित किये।
अनुष्ठान तप पूजन से प्रसन्न
पति इच्छा शिव वचन दिये।

स्वीकार किया हीमपति ने
पुत्री इच्छा शिव अनुशंसा।
क्षमा याचना संदेशा भेजा
हरि को बताया मनःदशा।

होता फलित हरितालिका
विवाह बंधन हो सुनिश्चित।
हो कर प्रसन्न महादेव देते
सौभाग्य सिंदूर का आशीष।

विधि विधान संयम नियम
जो करते व्रत हरितालिका।
अखंड सौभाग्यवती जीवन
हो भरा पूरा खुशहाली का।

भादों का सोमवार उत्तम व्रत
तीज त्योहार है नाम प्रसिद्ध।
दाम्पत्य जीवन बंधन होता है
खुशहाल प्रगाढ़ और समृद्ध।

ॐ नमः शिवाय।
जय माँ पार्वती।

अंजनीकुमार’सुधाकर’
बिलासपुर

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