

प्रकृति का श्रृंगार
पावस में प्रकृति रानी का,
यह कैसा होता श्रृंगार |
पल-पल में है रूप बदलती ,
भाँति -भाँति का कर श्रृंगार ||
वसुधा ओढ़े धानी चुनरिया ,
आंँचल में हैं फूल खिले |
चंदा की चमके रे बिंदिया,
उषा से सिंदूर मिले ||
पायल की नूपुर हैं बूँदें,
छननछनन करतीझनकार ,…
……
पावस में प्रकृति रानी का ,
यह कैसा होता श्रृंगार ||
सिर के ऊपर मेघ मटकिया ,
नभ से छलके नेह गगरिया |
चम-चम चमके चपला देखो,
बनी मेखला सजी कमरिया ||
ताल -तलैयों के दर्पण में,
यौवन अपना रही निहार….
पावस में प्रकृति रानी का,
यह कैसा होता श्रृंगार ||
मेघों के गड़गड़ -गड़ स्वर में,
झरनों के झरते झर- झर में|
नदियों के बहते कल -कल में,
पुरवैया के सर- सर स्वर में ||
लहरें सिंधु कीउछल-उछल कर गाती गीत मल्हार ,……..
पावस में प्रकृति रानी का,
यह कैसा होता श्रृंगार||
पल -पल में छाई उजियारी ,
पल -पल में छाई अंधियारी |
पल- पल में है रूप बदलती,
प्रकृति की है छटा न्यारी ||
इंद्रधनुषी रंगों से फिर,
भाँति-भाँति का कर श्रृंगार..…..
पावस में प्रकृति रानी का,
यह कैसा होता श्रृंगार|…..
– सरोज लता सोनी
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
