

आज की दुनिया
आज की दुनिया के होते रंग ढंग निराले,
ऊपर से गोरे अंदर से लोग है काले।
मुंह में राम और बगल में छूरी जैसा काम करते हैं,
सादगी से पेश आकर पीछे बदनाम करते हैं।
संस्कार और संस्कृति से नाता तोड़ दिया है सबने,
अपनी सभ्यता छोड़ विदेशी सभ्यता को अपना लिया है हमने।
जानवरों को घर में पालने लगे हैं सब,
घर के बड़े वृद्धाआश्रम में रहने लगे हैं अब।
पैसा अपने रिश्तो में अलगाव ले आया है,
बेगाने अपने और भाई हुआ पराया है।
मौसम की भी बात अब समझ में आती नहीं,
कभी तेज बारिश तो कभी धूप मन को भाती नहीं।
वृक्षों को काटकर शहर को वीरान कर दिया है,
सबके दिलों में प्यार की जगह नफरत को भर दिया है।
इंसान ही इंसान का दुश्मन बन बैठा है आज,
सुनता नहीं मन अब जिंदगी में खुशियों का साज।
हर तरह की सुख सुविधा में भी मन को चैन आता नहीं,
आराम देह है जिंदगी है पर फिर भी मन को कुछ भाता नहीं।
चेहरे पर नकली चेहरा लगाकर घूमते रहते हैं लोग,
कुछ भी करने से पहले मन डरता है क्या कहेंगे लोग?
काश! यह ब्रह्मांड मेरे मन की फरियाद को स्वीकार करें,
उदासी से भरे चेहरो पर खुशियों के सतरंगी रंग भरे।
पहले जैसा हो जाए धरती का सारा आलम,
ताउम्र साथ रहकर सब खुशियां मनाएं हम।
-सौ,भावना मोहन विधानी
अमरावती

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
