

गणपति विसर्जन
हे विघ्नेश्वर हे लम्बोदर, हे ऋद्धि सिद्धि के स्वामी।
दान ज्ञान का दे दो प्रभु, हम मूढ़मति अज्ञानी।
भारत में हर शुभ कार्य में गणपति का पूजन होता है।
दीपावली पर भी सबसे पहले, गणपति पूजन होता है।
हर वर्ष गणेश चतुर्थी पर, प्रभु आपकी स्थापना करते हैं।
अनन्त चतुर्दशी के दिन, आपका विसर्जन करते हैं
सौ बरस पूर्व तिलक जी ने इसका शुभ आरम्भ किया था।
अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट करने को यह शुरू किया था।
आज तलक उस परम्परा को श्रद्धाभाव से निभा रहे हैं।
हर वर्ष पण्डाल लगाकर, गणेश उत्सव मना रहे हैं।
दस दिन पूजा अर्चना करके नदी में विसर्जित करते हैं।
ये बात सोचने की है, क्यों नदी या सागर में विसर्जित करते हैं?
इस बार किया है निर्णय, नदी को प्रदूषित नहीं करेंगे हम।
धूमधाम से दस दिन तक पूजा हर रोज करेंगे हम।
फिर ढोल नगाड़े बजाते हुए…
शोभायात्रा निकालते हुए…
विसर्जन के लिए मन्दिर में लेकर जायेंगे।
एक बड़े से टब में प्रभु आपका विसर्जन करवायेंगे।
पानी में रखी प्रतिमा के गुण उस पानी में घुल जायेंगे।
श्रद्धा से सब उस पानी को अपने घर में ले जायेंगे।
पौधों में डालेंगे उसको, महसूस उन्हें तब यह होगा।
विघ्नहर्ता विघ्न हरने के लिए घर के बाहर चौकस होगा।
विघ्नहर्ता के रहते बाधा, किसी को छू तक भी न पाएगी।
प्रभु आपको देख के,सब बाधाऐं छू- मंतर हो जायेंगी।
हे सिद्धिविनायक! आपका विसर्जन नदी में नहीं करेंगे हम।
आज से ही नदी को प्रदूषण मुक्त करने की कसम खाते हैं हम।
–राधा गोयल
दिल्ली

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
