काव्य : महाव्रत हरतालिका तीज – सपना सी.पी.साहू “स्वप्निल” इंदौर

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महाव्रत हरतालिका तीज

अतिघोर तपस्या की थी माता पार्वती ने,
तब महादेव पतिरूप पाए, महाशक्ति ने।

वही व्रत भादौ मास की तीज पर आया,
श्री हरितालिका तीज महाव्रत कहलाया।

उमा ने मनधारी शिव को पाने की आस,
पतिरूप मिलेंगे भोले धारा अति विश्वास।

पिता हिमवान ने नारद जी को बुलवाया,
अद्भुत कन्या हेतु विष्णु जी सा वर चाहा।

माँ मैनावती ने, पार्वती को यह बात बताई,
सुन, उमा हुई व्याकुल बात हिय न भाई।

अपनी प्रिय सखी को बताई मन की बात,
सखी ने हर लिया पार्वती का देने को साथ।

संग ले गई सखी सघन वन, अज्ञात स्थान,
शक्ति ने मृदा शिवलिंग बनाया उस स्थान।

वर्षों वर्ष तक अन्नजल त्यागकर तपस्या की,
प्रसन्न हुए शिव, दर्शन दे मनइच्छा पूर्ण की।

आज भी प्रासंगिक यह अद्वितीय महाव्रत,
कन्याएंं, नारीयाँ श्रद्धावत करें व्रतों का व्रत।

बालू मृदा से शिव परिवार की मूर्ति बनाती,
सोलह शृंगारों को धारण कर पूजन करती।

निराहार, निर्जल, रातजगा पंचपूजा करती,
पति, परिवार के सुख की वे कामना करती।

प्रेमरस पूरित हरतालिकातीज का स्वरूप,
स्नेह, समर्पण, सुकामना का अनोखा रूप।

सर्वकामना सिद्ध करें शिवशक्ति का अनुष्ठान,
सौभाग्य, समृद्धि करें, हरे जीवन से व्यवधान।

सपना सी.पी.साहू “स्वप्निल”
इंदौर (म.प्र.)

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