

हरतालिका व्रत
हर माना शंकर। हर किसी का। ऐसा देवता जो सभी जातियों सभी वर्गों सभी रूपों सभी भाषाओं लिंगों वेशों का है। ऐसे संकर या शिव कल्याण को प्राप्त करने का व्रत। पर्वत राज कन्या पार्वती ने ऐसे वर को प्रजातांत्रिक विवाह के लिये चुना जो उनके राज परिवार को पसन्द नहीं था। माता मेना ने उन्हें जंगल में जाकर तपस्या करने से रोका परन्तु वे रूकी नहीं तब उनका नाम उमा हो गया। इधर शंकर जी ने पार्वती को व्यूटी पार्लर से सजी सुन्दरी के रूप में देखा तक नहीं। तब पार्वती ने अपने निश्चित आन्तरिक प्रेम और शंकर जी के मनोभाव को समझकर साध्वी वेश में घोर तपस्या कर अपर्णा नाम धारण किया। शंकर जी ने पार्वती के पवित्र प्रेम समर्पण एकाग्रता को देखकर उन्हें अपनी पत्नी बनाने का निर्णय लिया। तभी से सभी कुंवारी लडकियाँ विवाहित महिलाओं में निर्जल यह व्रत किया जाता है। चूंकि पार्वती की सखियों ने उन्हें उनके पति के पास पहुंचाया था इसलिये यह आलियों यानी सखियों द्वारा हरण किये जाने के कारण
हरतालिका व्रत कहलाता है। एक तरह से देखा जाय तो स्त्री स्वतंत्रता एवं प्रेम विवाह का सार्थक समर्थ निर्णय लेने वाला है यह व्रत।
–डॉ इन्दु जौनपुरी
प्रयागराज

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
