

लघुकथा
हरतालिका तीज
बसंती नाम की सार्थकता उनके जीवन में कभी नहीं बनी। या यों कहें कि तब से अभी तक सिर्फ बसंत ही है। शायद मधुमास उनके जीवन में कभी नहीं आया। क्योंकि बचपन में ही बाल विवाह हो गया था। खेल-खेल में पति और उनमें तकरार हो जाने से पति घर छोड़कर चला गया। और जीवन के पैंसठ बसंत बीत चुके, लेकिन अभी तक वे लौट कर नहीं आए।
विगत पंद्रह वर्ष पूर्व तक वह हरतालिका का व्रत करती थी। पास पड़ोस की महिलाएँ जब उनसे इस व्रत के बारे में बात करतीं तो वह कहती -भगवान शंकर और मां गौरा से प्रार्थना है कि मुझे सात जन्मों तक यही पति मिले और मैं अखंड सौभाग्यवती रहूँ।
उनका विश्वास है कि उनके पति अवश्य आएंगे। हालांकि अब उनके हाथ पैर साथ नहीं देते, दांत भी छोड़ कर जा चुके हैं। हाथ में पकड़ी लाठी डरी हुई काफी डगमगाती है। फिर भी हरतालिका तीज के व्रत को याद करके जरूर भगवान के आगे नत मस्तक हो जाती है।
–सरोज डिमरी
(स०अ०)चमोली उत्तराखण्ड

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
