लघुकथा : शुभेक्षु – विभा रानी श्रीवास्तव पटना

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लघुकथा

शुभेक्षु

“आपको सर्वोच्च शैक्षिक डिग्री अनुसन्धान उपाधि प्राप्त किए इतने साल गुजर गये! अब आप नौकरी करना चाहती हैं। आपने अब तक कहीं नौकरी क्यों नहीं कीं?”
“बहुत जगहों पर आवेदन फ़ार्म भरा लेकिन साक्षात्कार के समय छँटनी हो जाती रही।”
“क्यों छँटनी हो जाती रही? आपके पास अनुभव प्रमाण पत्र भी नहीं फिर उम्मीद करती हैं कि हम आपको नौकरी पर रख लें?”
“मेरी कुरूपता सबसे बड़ी बाधा रही मेरी नौकरी में!”
“आप इतनी कुरूप हुईं कैसे?”
“उछाले गये खौलते पानी की राह में मेरा चेहरा आ गया!”
“किसने ऐसा दुःसाहस किया? आपका जीवन नरक…,”
“कोई अपना! परन्तु, इतने वर्षों तक ना जाने कितने लिजलिजे ग़लीज़ स्पर्श से बचाव का उपाय भी रहा।”
“यहाँ आपकी नौकरी पक्की की जाती है।”

विभा रानी श्रीवास्तव
पटना

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