काव्य : कल्पना – मीनाक्षी छाजेड़ कोलकाता

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कल्पना

कल्पना मेरी भावना मेरी
वही तो चिरसंगिनी मेरी
अनथक उसकी कार्यशीलता
प्रेरणा बनती रोमांच की।
पूर्णता का आस्वाद पाती
कोमल सुखद स्पर्श भी
मेरी उमंग में मैं ही रहती
उसी तरंग में बही जाती।
सृजन जब मैं हूँ करती
बाल्यकाल की छवि बनती
अंगुल मेरी पकड़ कल्पना
नेह को विस्तृत बनाती।
निहाल मैं हुए जाती
स्वर्ग सुख को यहीं पाती
आह्लादित जीवन को बनाती
प्रशस्तित मैं होती जाती।

मीनाक्षी छाजेड़
कोलकाता

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