काव्य : वृद्धावस्था – मनोहरसिंह चौहान मधुकर जावरा

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वृद्धावस्था

ये बुढ़ापे के दिन गुजर जाएंगे,
देखना दिन तुम में भी आएंगे।
क्या होता है ये बुढ़ापा एक दिन,
आप सब भी इसे समझ जाएंगे।।

दर्द सहते गुजरता हमारा दिन,
आंखों में कट जाती हैं सारी रात।
बैरी बुढ़ापा ये मुश्किल से कटे,
बेटों को समझ आती नही बात।।

बुजुर्गो का कहा इन्हे सुहाता नहीं
बुरे लगते इन्हे ये पुराने लोग।
गए दिन आपके ये नया दौर है,
कहे आज के नए नवेले लोग।।

दवाई का कहो तो मुंह बनाते,
आज कल कर के बहाने बनाले।
बुढ़ापा बेरी ये मुश्किल से कटे,
कहा है राम से अब हमें उठाले।।

मनोहरसिंह चौहान मधुकर
जावरा जिला रतलाम मध्य प्रदेश

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