काव्य : हिन्दी मोहताज नहीं – जगदीश कौर प्रयागराज

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हिन्दी मोहताज नहीं

हिन्दी किसी का मोहताज नही
क्यूं आज इसके सर पर ताज नही
यह जन जन की थी भाषा
सबके मन की थी अभिलाषा
फिर कैसे हुई इसकी दूर्दशा
इसांनो की कैसे बदली मनोदशा।

यह हमारे माथे का ताज थी
होते इससे पूरे कामकाज भी
आफिस ,दफ्तरों में विदेशी भाषा
कैसे भूली उन्हें मातृभाषा
संसद और सियासत में भी
कैसे बनी यह मूकभाषा।।

अब तो अपनी भूल सुधारों
हिन्दी के प्रागंण में पधारों
आज इसका श्री गणेश करो
तिलक लगा अभिषेक करो
इतनी न इसकी छवि बिगाड़ो
केवल 14सितंबर इसे पुकारो
हररोज हो दो यह नारा
हिन्दी हिंदुस्तान हमारा।।

बाकी सारी भाषाएँ है सम्मानित
किसी को भी न करू अपमानित
रंग बिरंगे फूलों की यह बगियाँ
पानी से सींचती इसे सारी नदियाँ
सबका तुम गुणगान करों
इंसानियत का कद्रदान बनो
सारे फूलों का हार बना
हिन्दी के धागे में सजा
ऐसा हिंदूस्ता है सपना
जो हो हम सब का अपना।।

जगदीश कौर
प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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