काव्य : अपनी भाषा हिंदी – मुन्नी पांडेय प्रतापपुर

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अपनी भाषा हिंदी

हिंदी हमारी मातृ भाषा है,
रहे अमर यह अपनी भाषा ,
स्वर्ग बना रहे यह हमारा देश,
अंग्रेजी की गिट-पिट पड़ा रहे विदेश।

क्या कहे यह भाषा हिंदी, रही सदा सनातन।
अपना-अपना करते मानव, छोड़ न पाए जातन।
हिंदी रही सनातन भाषा बड़ बोल कहे हम अंग्रेजी,
छुड़ा न पाए केचुली अपनी , हे मानव यह एक जातक।

ज्ञान की ज्योति जला सको तो, अपनाओ अपनी भाषा।
आधुनिकता से बाहर आकर, जगाओ अपनी अभिलाषा।
हे मानव तुम भारत के पूत,
अटल निष्ठा जगाकर अपनी, बने रहो सपूत।

आओ मित्रो गाए गाना, सदा रहे विजयी हमारा,
हिंदी, हिंदू, हिंदुस्ता,
बना रहे यह सदा हमारा।
आश्रित रहो न विदेशी भाषा की
अलख जगाओ अपनी भाषा की।

हर भाषा को सगी जो मानती
वह भाषा है हिंदी ,
भरी पूरी हो सभी बोलियां,
यही भावना है हिंदी।

हिंदी हमारी भावना का साज है,
हिंदी हमारी देश की सशक्त आवाज है।
हिंदी हमारी मातृभाषा , हिंदी हमारी जुबान है।
हिंदी देश की राष्ट्रभाषा, हम सबका स्वाभिमान है।

हिंदी भाषा अपनी भाषा,
अपनाओ तुम हिंदी, अपनाओ तुम हिंदी।।

मुन्नी पांडेय
प्रतापपुर , सूरजपुर (छ. ग.)

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