

हिंदी हमारा स्वाभिमान
भाषा जिसे हम अपनी माता या परिवार से सीखते हैं , ‘मातृभाषा’ कहलाती है। जन्म के बाद जो भाषा हमारे कानों में पड़ती है जिसे सुन कर हम विचारों की अभिव्यक्त करना सीखते हैं , वही हमारी मातृभाषा कहलाती है। यही भाषा हमें अपनी संस्कति के साथ जोड़ती है और हम उसकी धरोहर को आगे बढ़ाते है। भाषा, संस्कृति और सभ्यता एक दूसरे के पूरक है। आज अगर हम अपनी मातृभाषा को अपनाते हैं, तो अपनी संस्कृति को भी अपनाते हैं। इस आधुनिक समय में अपनी संस्कृति और अपनी जड़ों से जुड़ कर ही हम अपने स्वाभिमान की रक्षा कर सकते है
भारत विविधताओं का देश है। यहाँ बहुत सी संस्कॄतियों का संगम है। संस्कॄति और मातॄभाषा का बहुत निकट सम्बन्ध है। संस्कॄति के आदान प्रदान में भाषा की अहम भूमिका है। भारत के संविधान में भी भाषा को बहुत आदर का स्थान प्राप्त है। संविधान मे २२ भाषाओं को स्थान दिया गया है जो देश के विभिन्न प्रदेशों में बोली जाता हैं। शिक्षा में भाषा का महत्वपूर्ण योगदान है। ज्ञान का माध्यम यदि मातॄभाषा हो तो विषय को आसानी समझा जा सकता है जब बच्चे अपनी मातृ भाषा पर पकड़ बनाते है, तो संपूर्ण देश बौद्धिक विकास की ओर अग्रसर होता है।
शिक्षा में भाषा का महत्वपूर्ण योगदान है। ज्ञान का माध्यम यदि मातॄभाषा हो तो विषय को आसानी समझा जा सकता है अगर आज भी आप अपने देश और देश की मातृ भाषा को आगे बढ़ाते है, तो आपकी शिक्षा व्यवस्था भी स्वयं ही विकसित होगी।
विचारों और भावनाओं को आदान प्रदान करने का माध्यम है भाषा। विचारों की अभिव्यक्ति कभी शब्दों के द्वारा की जा सकती है कभी सांकेतिक। इस प्रकार से भाषा को दो रूपों मे समझा जा सकता है। प्रकृति में भाषा का प्रयोग केवल मनुष्य मात्र ही नही करते, वरन पशु , पक्षी, यहाँ तक की नदी, झरने, हवा सभी की अपनी एक भाषा है। सुनने समझने की शक्ति रखने वाले मनुष्य शब्दो की भाषा का प्रयोग करते हैं जबकि सांकेतिक भाषा का प्रयोग वह करते हैं जिनमें समझने की तो शक्ति होती है मगर सुनने की क्षमता का अभाव होता है।
हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिन्दी हमारी ‘राष्ट्रभाषा’ भी है। वह दुनियाभर में हमें सम्मान भी दिलाती है। यह भाषा है हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की। हम आपको बता दें कि हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है।
हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं। एक हिंदुस्तानी को कम से कम अपनी भाषा यानी हिन्दी तो आनी ही चाहिए, साथ ही हमें हिन्दी का सम्मान भी करना सीखना होगा।
आज विश्व में मातृभाषा के महत्व को समझा गया है। शायद तभी २१ फरवरी को विश्व मातृभाषा देवस के रूप में स्थापित किया गया। मातॄभाषा मानव से मानव को जोडने का सबसे सुगम साधन है। हमे अपनी मातॄभाषा का सम्मान करना चाहिये जिससे एक सुदॄढ और स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके
– मधूलिका श्रीवास्तव
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
