

क्या हो गया है हमारे युवाओं को
इटारसी।
आज एक स्थानीय स्कूल के सामने कॉलेज में पढने वाले छात्र नेताओं ने इस बात के लिए प्रदर्शन किया कि स्कूल प्रबंधन विद्यार्थियों को तिलक लगाकर आने से मना करता है और जिन विद्यार्थियों की कलाई में राखी बंधी हुई थी स्कूल प्रबंधन ने उन्हें उतरवा दिया। प्रदर्शनकारी युवक युवतियों के संगठन ने जिस प्रकार के शब्दों के साथ नारेबारी वो किसी शिक्षण संस्थान के सामने किये जाने योग्य नहीं मानी जा सकती।
प्रदर्शनकारी छात्र नेता इस बात की मांग भी कर रहे थे कि इसाई मिशनरी द्वारा संचालित स्कूल परिसर में भारत माता, देवी सरस्वती और विवेकानंद की प्रतिमाएं भी स्थापित की जाएँ।
छात्र नेता इसकी मांग आखिर क्यों करना चाहते हैं ये समझने की जरुरत है। दरअसल ये छात्र नेता उस संगठन से नाता रखते हैं जो केंद्र और राज्य सरकार चला रही राजनीतिक पार्टी से नाता रखता है। ऐसे में साफ़ झलकता है कि इस प्रकार के प्रदर्शन के लिए इन छात्र नेता किसके इशारे पर कर रहे हो सकते हैं। हमारे देश में एक और बड़ी राजनीतिक पार्टी है जिसने कई दशकों तक देश और अनेक राज्यों पर शासन किया है। उस पार्टी से भी एक छात्र संगठन का नाता है।
यह सही है कि छात्र राजनीति से देश प्रदेश को कई नेतृत्व मिले हैं चाहे किसी भी राजनीतिक पार्टी से आये हों। लेकिन आज इस दौर में छात्र नेतागण जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग अपने प्रदर्शन आदि में करते दिखाई दिए उसे कैसे कोई विरोध प्रदर्शन का सही तरीका कह सकता है?
नगर में ऐसी सैंकड़ों समस्याएं है जिन पर छात्र राजनीति की जा सकती है, जिनमें नगर और गाँव की सड़कें, शहर की सडकों की दुर्दशा, सडकों पर अतिक्रमण और सड़क यातायात। ये ऐसी समस्याएं है जो धीरे धीरे नगर को दिन ब दिन बर्बाद किये जा रही हैं। देश को चारों दिशा से जोड़ने वाला इटारसी अच्छे स्तर के शिक्षण संस्थानों से वंचित है। न यहाँ कोई मेडिकल कॉलेज खुल सका है और न ही कोई इंजीनियरिंग कॉलेज ही खुल सका है। न ही इस क्षेत्र में कोई बड़ी औद्योगिक इकाई आ सकी है।
वहीँ बुधनी जिसकी कोई खास कनेक्टिविटी न सड़क से है और न ही रेल से है वहां स्थापित हुई दो बड़ी औद्योगिक इकाइयों के स्थापित हो जाने के कारण हजारों लोगों को रोजगार मिला है। इसे मामा की अनदेखी कहें या लोकल पॉलिटिक्स की विफलता कहें इस तक की ओर छात्र नेताओं की नज़र क्यों नहीं जाती। एक स्कूल के सामने हल्का प्रदर्शन करने के स्थान पर एसडीएम को ज्ञापन देकर भी अपनी बात कही जा सकती थी। और यदि ऐसा करते तो भारत माता, देवी सरस्वती और विवेकानंद के प्रति सच्ची भावना रखने वाले भी प्रसन्न हो जाते। बहरहाल ये देश है वीर जवानो का अलबेलों का मस्तानों का इस देश का यारों क्या कहना।
– इंजीनियर बी बी गांधी
इटारसी

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
