

दस सितंबर आत्महत्या निषेध दिवस
बने नहीं हम अपने ही हंता
मानव जीवन की ये सौगात,
देने वाले है हमें सृष्टि नियंता।
अतः इसे हम कर लें सार्थक ,
बने नहीं हम अपने ही हंता।।
सम्भल कर रखें कदम,
जिंदगी न मिलती हरदम
आज चौराहे पर लगे एक बड़े बोर्ड पर लिखी इन लाइनों ने बरबस मेरा ध्यान अपनी ओर खींच ही लिया कि वास्तव में जिंदगी कितनी अनमोल है और इसकी कीमत हमें तब पता लगती है जब हम इसे खो देते हैं या खोने जैसी स्थिति में आ जाते हैं…
आज तो जिंदगी से खेलना लोंगों के लिये कितना आसान हो गया है ।पहले लोग जिंदगी से संघर्ष करते थे पर अब लोग बड़ी ही सहजता से जिंदगी से खेल जाते हैं..
अगर एक छात्र परीक्षा मे असफल हो गया तो वह हार गया,अगर नॉकरी नही मिली तो वह हार गया,अगर किसी से प्यार हुआ वो नही मिला तो हार, अगर शादी हो गई और पति पत्नी नही बनी तो हार मान लेना…दाम्पत्य अच्छा है पर आर्थिक संकट है तो हार जाना और बच्चे नही हैं तो हार जाना…..बच्चे हैं पर बेटा नही है तो हार…. बेटा है और वह लायक नही है तो हार मान लेना ….और हार मान लेना मतलब टूट जाना और जिंदगी खत्म कर लेना ये आज का कड़वा सच है…
यद्यपि ये लाइने यातायात की व्यवस्था को बनाये रखने के लिये लिखी गई हैं पर अगर हम गौर करें तो देखेंगे कि आज लोग किस तरह से जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं…
एक तो प्रकृति और समय ने लोंगों के अंदर से वैसे भी हँसी छीन ली है ..कोई कब हादसे का शिकार हो जाये, पता नही…किसी को कौन सी बीमारी कब लग जाये पता नही…तो फिर क्यों हम स्वयं अपने जीवन से दूर होने की सोचने लगते हैं…
किसी को भी जीवन में वो सभी कुछ नही मिल पाता जिसकी उसे चाहत होती है क्योंकि चाहतें तो हमारी अनंत हैं वे कभी खत्म नहीं होतीं..एक पूरी होती नही कि दूसरी पैदा हो जाती है,इस प्रकार जीवन सदैव असंतुष्ट बना ही रहता है और जो इस सत्य को समझ जाते है उनकी बात अलग है नही तो आज सभी असंतुष्ट ही दिखलाई पड़ते हैं और इस आपाधापी वाले माहौल में खुद को अकेला पा कर कुछ अनहोनी कर जाते हैं..
जीवन की सच्चाई ऐसी नही होनी चाहिये।जीवन तो संघर्षों का नाम है यदि घोड़े पर चढ़ना है तब गिरना भी पड़ सकता है और हमें इसके लिए तैयार भी रहना चाहिये ..
इस प्रकार जितने भी लोग जीवन में सफल हुये हैं उनके जीवन में भी संघर्ष था ।ऐसा बिल्कुल नहीं था कि उन्हें अपनी राहें आसानी से मिलती चली गई।उन्होंने अपनी सकारात्मक सोच से अपनी राहों को आसान बनाया और अपनी मनचाही मंजिल पाकर एक इतिहास रच डाला.. अतः हमें भी अपने इस मानव तन की कठनाइयों से जूझते हुये आगे बढ़ना है और विषम परिस्थितियों से बिना हार माने अपनी मंजिल को पाना है तभी हमारे इस जीवन की सार्थकता है।
– ममता श्रवण अग्रवाल
ऑथर
सतना

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
