लघुकथा : हिंदी दिवस – शिखर चंद जैन कोलकाता

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लघुकथा

हिंदी दिवस

“हैलो, गुड मारनिंग सर! सिबनाथ बोल रहे हैं. कैसे हैं साहेब?” शिवनाथ ने बैंक के हिंदी प्रकोष्ठ के मुख्य कार्यकारी अविनाश को फोन लगाया था.

“बोलो शिवनाथ! आज इतनी सुबह सुबह कैसे याद किया? ” अविनाश ने आश्चर्य से पूछा.

“अsssss… सर ! हिंदी दिवस आ रहा है. कुछ बजट पास कर देते हमरा ब्रांच खातिर तो बढियां से सिलिब्रेट हो जाता .”

“पांच हजार में हो जाएगा?”

“अरे सर …आप तो जोकिंग कर रहे हैं.इतना कम में कैसे होगा. काम से कम फिफ्टी थाउजेंड तो कीजिये. कल्चरल प्रोग्राम कर देंगे. तीन-चार गो लेखक, दू गो कबित्री लोग को भी बुलावेंगे. कुछ सौ-पचास का ऊ लोग को भी देना होगा… कल्चरल प्रोग्राम में डांसर लोग भी तो दस-दस हजार ले लेगी…पान-सात हजार मियूजिक वाला लेगा…फिर खा-पीना सर…समझ रहे हैं ना…और आपको भी आना है..आपको भी आठ-दस हजार का गीफ्ट देंगे ना सर !” शिवनाथ ने एक ही बार में पूरी बात समझा दी.

अविनाश पुराना घाघ था.जल्दी समझ गया.

बोला, “ठीक है..ठीक है..सुनो लेकिन कलाकार ऐसी बुलाना कि मने…नखरा न करे ज्यादा. समझ रहे हो न. प्रोग्राम बढ़िया होना चाहिए.फुल रिलैक्स मूड में. तुम तैयारी करो.मैं सैंक्शन करवाता हूँ.”

शाखा में वाकई खूब धूमधाम से हिंदी दिवस मनाया गया. लेखकों को सौ-सौ रूपए मूल्य की पुस्तकें और गुलदस्ता देकर सम्मानित किया गया. उन्हें सम्मानपूर्वक विदा करने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ,जिसमे सबने भरपूर मनोरंजन किया. हिंदी की सेवा करने के बाद सभी कर्मचारी चैन की नींद सोये.

शिखर चंद जैन
कोलकाता

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