कहानी : विवशता -डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन,भोपाल

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कहानी

विवशता

संसार में ऐसा कोई व्यक्ति न होगा जो लाचारी, मज़बूरी, परेशानी में न हो और वह एक ऐसी स्तिथी में रहता हैं या आ जाता की वह न इधर जा पाता हैं न उधर जा पाता हैं वह परिस्थितियों से भागना भी चाहता है और कभी कभी सामाजिक ,व्यक्तिगत , पारिवारिक व्यवस्था से डर कर सहम जाता हैं अधिकतर ये समस्याएं उसे शादी के बाद समझ में आती हैं शादी करने के बाद उसके भागने की स्तिथी नहीं हो पाती या नहीं कर पाता.
सोहन एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नोकरी करता हैं और जब भी देखो अपने काम से काम व् ईमानदारी से अपना कर्त्तव्य का निर्वहन करना . एक दिन मिलने आया तो स्वाभाविक रूप से संतोष ने उसे पानी पिलाया और चाय के लिए पूछा तो वह राजी हो गया .संतोष का परिवार उसे बहुत अच्छा लगा पर संतोष की आतंरिक स्तिथि से वह वाक़िफ़ हैं . खैर पारिवारिक मामलों में कोई पहले नहीं खुलता कारण कभी भी अपने कष्ट दूसरों को नहीं बताना चाहिए उससे वह हंसी का पात्र बनता हैं और कोई उसे कष्टों को बाँट नहीं सकता .
परन्तु यह भी सत्य है जब हम सामाजिक प्राणी है तो आपस में विचारों का आदान प्रदान करना चाहिए जिससे मन हल्का भी होता हैं और कभी कभी उचित मार्गदर्शन मिल जाता हैं .संतोष ने कुछ बात की तो वह टाल गया पर संतोष ने कोई दबाब नहीं दिया और न कोई जरुरत ,सोहन की समस्या सोहन जाने पर इतना समझ में आया की वह कोई विशेष समस्या में उलझा हैं . खैर बात आयी और गयी .
सोहन हमेशा आता जाता रहता कुछ काम की बात करता और कभी सामाजिक अव्यवस्थाओं पर चर्चा करता . पर उसकी बातों से यह समझ में आता की वह अपने पारिवारिक जीवन से सुखी नहीं हैं .कभी चाय पीता कभी नहीं पीता.एक दिन वह टूटा सा बैठा और बड़े दुखी मन से उसने अपनी बात बताई तो संतोष हैरत में आगया .
शादी हुए ४ वर्ष हो गए और एक बच्चा २ वर्ष का हैं .शादी के बाद से एक दूसरे के विचार पूर्व पश्चिम है दिन भर उसे अपने में मस्त रहना और मैं नॉकरी से हारा थका आता हु उसके पहले मोबाइल पर ऐसी बात बोल देती हैं की मन घर जाने को नहीं होता .कभी मेरे ऊपर शक करना ,नौकरी इस प्रकार की सोहन को कभी इधर जाना कभी उधर जाना .रात दिन की ड्यूटी आवश्यक सेवा . घर पहुचों तो पत्नी लड़ने को तैयार . कभी यह मांग कभी वो समस्या और कभी कुछ नहीं तो वह समस्या .
सोहन एक दिन अचानक संतोष के पास आया और अनमना से ऐसा लगा जैसे वह कोई बड़ी चिंता ग्रस्त हैं .सोहन बोला महोदय मेरी इस स्थिति का कोई उपाय हैं ? संतोष ने कहा बताओ क्या समस्या हैं उसके बाद सोच कर निदान निकाला जा सकेगा , सोहन बोला न मेरी पत्नी मुझे छोड़ना चाहती, न तलाक लेना चाहती ,न सुख से रहना चाहती और मायका जाना चाहती . में घर में परेशां और बाहर अपने काम में व्यस्त पर घर जाने का मन नहीं होता . वह शंका करती हैं और अपने मायके वालों से प्रसन्न रहती हैं .क्या सोहन आपने अपने मन से शादी की या परिवार की रजा मंदी से .माता पिता की रजा मंदी से ,तो आप सबसे पहले अपने माता पिता और श्रीमती के परिवार वालों से मिलकर समस्या बताओ और उसके बाद कुछ सोचो , महोदय कोई क़ानूनी सलाह .इस पर संतोष ने समझाया की आपको बहुत कड़ा कदम उठाना पड़ेगा उसके लिए तैयार हो तो कुछ सलाह दी जा सकती हैं सोहन सहर्ष तैयार हुआ तो सबसे पहले पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराओ और अपनी सच्ची बात बताओ .उसके बाद आप अलग रहो कम से कम १ वर्ष .उसके बाद राजी नामा से तलाक ले सकतो हो .इतना सुनते ही सोहन फफक फफक कर रोने लगा और बोला यही मेरी विवशता हैं कोई क्या कहेगा ? संतोष बोला क्या इस समय कोई तुम्हारी मदद कर रहा हैं .कभी किसी ने गुस्से में कोई गलत कदम उठा लिया तब क्या होगा .यदि पत्नी ने तुम्हारे ऊपर कोई आरोप लगा दिया तब क्या करोंगे ?
सोहन पशोपेश में और वह रुआंसा सा होकर कहने लगा कोई ऐसा हल निकाले जिससे हम सुख से रह सके .संतोष ने कहा समझौता वादी नीति का पालन करो . और पत्नी पढ़ी लिखी है तो उसे कॉउंसिल से बात कराओ .इस पर पत्नी कहती है की तुम मुझे पागल ,झगड़ालू बताना चाहते हो .
सोहन किंकर्तव्यविमूढ़ हैं वह क्या कर सकता हैं वह विवश हैं हां एक बात जरूर समझ में आ रही की सोहन टूटता जा रहा हैं और कही वह आत्म हत्या न कर ले /? वह नशाखोर न बन जाए या कोई गलत शोहबत में न फँस जाए या पलायन वादी होकर भाग जाए .इस समय सोहन को मनो वैज्ञानिक परामर्श की जरुरत है और उसकी पत्नी को पर पत्नी की कोई अपनी मजबूरिया हो सकती हैं हो सकता है सोहन घर खर्च पूर्ण रूप से न उठा रहा हो .
इससे यह बात जरूर समझ में आयी हम जितने भौतिक सम्पन्न होते जा रहे हैं उतने हम धर्म , नैतिकता से दूर होते जा रहे है और एक दूसरे के विचारों को आदर नहीं देना चाहते .अपनी समस्यायों की तह में न जाकर मात्र एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण कर अपनी गलतियों को ढाँककर अपने आपकोको निर्दोष सिद्ध करना चाहते हैं इसे विवशता कहे, हताशा, निराश या आदर का आभाव या एक दूसरे के भावों को आदर न देना या अनवरत इसी संघर्ष से अपना जीवन गुजारना .
वैसे यह कहानी घर घर की कहानी कह सकते हैं कही सोहन तो कही मोहन और कही सुनीता तो कही कुमुदनी . रास्ता अंधी सुरंग जैसा हैं कितनी लंबी ,क्या अंत और कैसे ख़तम होंगी. मार्ग सरल और कठिन दोनों हैं चुनाव अपना अपना.

विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन
संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू
नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड,
भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753

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