लघुकथा : समय – सरोज डिमरी चमोली उत्तराखण्ड

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लघुकथा

समय

चेतन और विवेक सहपाठी थे। आगे चलकर के उन्होंने अपने हिसाब से रोजगार तलाश किया। चेतन शिक्षा विभाग में आए जबकि विवेक पंडिताई का काम करने लगे।
एक बार चेतन की मां बहुत बीमार हो गई। चेतन की पत्नी पति के मित्र के पास आई।उन्होंने विवेक से कहा चेतन तो अपनी ड्यूटी पर हैं आप जरा माँ जी को चलकर देख लीजिए।
विवेक ने समय और परिस्थिति को देखते हुए अपनी विद्या एवं बुद्धि का प्रयोग किया।
तंत्र मंत्र और झाड़फूंक के साथ वह महादेव की दुहाई देने लगा कि अगर इस शरीर को नहीं छोड़ा तो तुम्हें शिव हंत्या लगेगी।
पास में बैठी जीवनी यह सुनकर कुछ देर तो दंग रह गई कि पंडित जी दादी के शरीर को छोड़ने की बात कर रहे हैं और शरीर छोड़ना अक्सर मर जाने को कहा जाता है।
फिर अंकल (पंडित) जी बार-बार ऐसा ही क्यों बोल रहे हैं।
बीमारी के साथ ऐसा प्रयोग! बहुत बड़ी दुविधा में पड़ी। अपने पिताजी के लिए फोन मिलाया और सारी बातें कह सुनाया।
अब चेतन को लगा कि वास्तव में जीवात्मा की रक्षा करना सबसे बड़ा धर्म है वह दो दिन का अवकाश लेकर तुरंत घर चला आया। घर पर मांँ की हालत हर पल बिगड़ती जा रही थी। उन्हें बहुत दर्द हो रहा था। उन्होंने एंबुलेंस बुलाई और सरकारी अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया यहां पर कुछ भी हालत सुधार न देखकर के उन्होंने आगे का रास्ता अपनाया।
एअर लिफ्ट से महानगर में आकर यहां पर चिकित्सीय सुविधाओं का लाभ लेते हुए उन्होंने माता जी के कई परीक्षण करवाये। परीक्षणों की रिपोर्ट आने के बाद यथा समय में सही उपचार मिला। जिससे चेतन की मां फिर से स्वस्थ हो गई और अपना काम करने लगी।
अब जीवनी की समझ में आया की हम लोग अंधविश्वास करके हाथ जोड़े एक ही जगह पर ठहर जाते हैं। जबकि हमें सूझबूझ से अपने जीवन को गतिशील बनाना अत्यधिक आवश्यक होता है।

सरोज डिमरी
चमोली उत्तराखण्ड

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