नारियां अपने आत्म गौरव के लिए संघर्ष करें – राजेन्द्र शर्मा राही भोपाल

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नारियां अपने आत्म गौरव के लिए संघर्ष करें

हमारी हिन्दू सांस्कृतिक सभ्यता का इतिहास अनेक महानताओं से भरा पड़ा है जिसकी गौरवगाथाओं लिख लिख कर ना तो हमारे हाथ आज तक थके और नाहि जिसकी महिमा गा गा गाकर हमारा कंठ आज तक थका यही कारण है कि अखिल विश्व हमारे सांस्कृतिक मूल्यों धार्मिक मान्यताओं परम्पराओं को सम्मान की दृष्टि से देखता है और अधिकांश देश इसे जानने समझने एवं अपनाने के लिए निरंतर लालयित बने रहते है ।
यह हमारी भारतीय सांस्कृतिक सभ्यता की महानता का ही परिणाम है कि हमारे यहां नारियों को पूजनीय स्थान प्राप्त है हिन्दू पूजन पद्धति में ऐसा कोई भी पूजन नहीं है जो वगैर माता दुर्गा एवं पार्वती की पूजा के संपन्न होता हो ।
विभिन्न त्योहारों पर श्रद्धा भाव से आकृष्क झांकिया लगाई जाती है तथा पूजा की जाती है पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है
जहां एक ओर हमारी संस्कृति इतनी महानताओं से भरी पड़ी है वहीं दूसरी ओर हमारी आज की युवापीढी पाश्चात्य सभ्यता को तेजी से अपनाने में लगी है इन सब कारणों से हमारी सांस्कृतिक सभ्यताएं वर्तमान परिदृश्य में विकृति के दौर से गुजर रही हैं जिन मानवीय मूल्यों आदर्शो के लिए हम कल तक गर्व का अनुभव करते थे वे आज हमारे बीच से अपना स्थान खो रही है
पाश्चात्य सभ्यता का सांस्कृतिक प्रदूषण इन्टरनेट की कुछ बेबसाइटों, वर्तमान फिल्मों विज्ञापनों धारावाहिकों ,काम उत्तेजना परोसते गानों, फैशन दूषित साहित्यों के माध्यम से जन सामान्य तक तेजी से पहुंच रहा है एक ओर जहां नव तकनीकें संचार क्रांति लाने रोजगार सृजित करने में वरदान साबित हुई है वहीं इनका व्यवसाय हित में दुरूपयोग होने एवं मीडिया सरकार से संरक्षण मिल जाने के कारण जमीनी स्तर पर दम तोड रही हैं व्यवसायिक फायदे के लिए लडके लडकी के बीच बहन-भाई के परम्परागत रिश्ते की जगह दोस्त का रिश्ता परोसना ,कला मंच पर आधुनिकता एवं मनोरंजन के नाम पर लडकी को सेक्स सिंबल आयटम गर्ल के रूप में प्रस्तुत करना भडकते फैशन डिजाईन एवं गानों के जरिए नृत्य का तदनुसार मंचन करना एवं एक भोगविलास की वस्तु के रूप में दिखाने की कोशिश आज की जाती है ईश्वर पृदत्त नारी के शरीर की आकृति का व्यवसायिक परिदृश्य में विभिन्न रूपों में मजाक उडाया जाना आज आम बात हो गयी है इस कारण नारी के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण रखने के भाव में कमी आयी है आज टी आर पी के नाम पर इसे जनमानस की पसंद बताया जा रहा है जबकि यह पसंद थोपी जा रही है जब देखने सुनने पढने के लिए दिन रात अश्लीलता एवं काम उत्तेजना बढाने वाला साहित्य परोसा जायेगा तो चिन्तन के धरातल को नैतिक कैसे बनाया जा सकता है आज आधुनिकता एवं फैशन की आड में नारियों के परिधान विशेष रूप से इस प्रकार के डिजाईन किए जा रहे हैं जिसमें नारी के जिस्म को अधिक से अधिक दिखाने की कोशिश की जा रही है मर्यादा प्रधान सभ्य संस्कृति वाले इस महान देश में क्या यह नारी का अपमान नहीं है वस्तु बेचने के नाम पर काम उत्तेजना बेची जा रही है इसकि परिणति फिल्मी स्टाइल में फब्तियां कसना,छेड़खानी बलात्कार,लूट हत्या जैसी घटनाओं के समाचार हम प्रतिदिन पढते है नव तकनीकों के दुरूपयोग से अपराधों की बाढ सी आ गयी है इस अचानक बदलाव को वैश्विक शक्तियों द्वारा धन के बल पर थोपने के कारण देखने के दृष्टिकोण में काफी बदलाव देखने में आया है इस कारण कहीं कहीं लडकियो महिलाओं को घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है जो इसका विरोध करते है उनकी आवाज को मीडिया की मदद से दबाया जाता है यह कहना गलत नहीं होगा कि नकारात्मक प्रस्तुति की प्रतिक्रिया कभी सकारात्मक नहीं हो सकती
आज हमें इसके मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभावों को गंभीरता से समझने की आवश्यकता है तथा अपराधों की विवेचना में जो तथ्य सामने आते है तदनुसार नीतियां एवं कडे कानून बनाये जाने की आवश्यकता है जिससे कोई गलत फायदा उठाकर सामाजिक परिस्थितियां विषाक्त करने का साहस नहीं कर सके इसके साथ साथ हमारे पाठयक्रमों में नारियों के गरिमामयी अतीत को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है जिससे हमारा युवावर्ग उसे जानकर गौरव का अनुभव कर सके तथा एक सकारात्मक सोच का वातावरण निर्मित किया जा सके।
आज इस बात की आवश्यकता बन पड़ी है कि नारियां मर्यादित परिधानों के डिजाईन को अपनाने में रूचि दिखाएं एवं अपने आत्मसम्मान तथा आत्मगौरव के लिए संघर्ष करें जब हम अपनी रूचियां अपने देश-काल संस्कृति के अनुरूप तय करेंगे तो फैशन डिजाइनर भी तदनुसार परिधानों को डिजाईन करने में रूचि दिखायेंगे जो फिल्में गानों नृत्यों एवं फिल्मांकन के माध्यम से नारी को अपमानित करती हैं उन्हें प्रोत्साहित नहीं करें हमारी प्रतिक्रिया एवं सजगता ही सकारात्मक परिवर्तन के लिए निर्माताओं को बाध्य कर सकती है ।
हमारे देश की बेटियां एवं महिलाएं पहले से ज्यादा शिक्षित हैं तथा विभिन्न क्षेत्रों में भारत में ही नहीं विश्व में नाम रोशन कर रही हैं शिक्षा का स्तर बढा है तो सोच का स्तर भी उठना चाहिए, वृक्ष जैसे जैसे बडा होता है तो उसकी शाखाएं फैलती है और वह और अधिक छाया देता है शाखाएं फलों से लदकर झुकती है तो वह विनम्रता की ही प्रेरणा देती हैं ।
अतः हमें अपने पहनने के परिधानों में सादगी एवं शालीनता को अपनाना चाहिए ,चिंतन के धरातल को मानवीय एवं सकारात्मक बनाने के लिए फिल्मों विज्ञापनों धारावाहिकों की विषय वस्तु इस प्रकार की होनी चाहिए जो आम आदमी के जीवन को सुखमय सहज आरामदायक मनोरंजक बनाने के साथ साथ सामाजिक समस्याओं का हल भी बनें भारतीय नारी अपने जीवन में बेटी बहू पत्नि सास मां जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक दायित्व निभाती है इसीलिए उसे भारतीय परम्पराओं धार्मिक मान्यताओं में बेहद गरिमामयी एवं पूजनीय स्थान प्रदान किया गया है ऐसा नहीं जैसा कि आधुनिकता के नाम पर दिखाने की कोशिश की जाती है
वगैर नारी के सम्मान के सभ्य समाज की परिकल्पना नहीं की जा सकती यह निर्विवाद सत्य है कि मानवीय मूल्यों की अनदेखी कर प्रगति समृद्धि के रास्ते पर बहुत लम्बे समय तक आगे नहीं चला जा सकता इसलिए हम स्वयं जगें दूसरों को जगाएं तभी वह हमारे माननीय मूल्यों के संरक्षण में सार्थक सिद्ध होगा।

राजेन्द्र शर्मा राही
भोपाल

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