

बांसुरी फिर नहीं बजाई
राधा ने रस्में सभी निभाईं।
बंध बंधन में शादी रचाई।I
भूल सकी ना प्रियतम रसिया को,
रही छिपाये मन में बसिया को।
पहुँची द्वारिकाधीश के द्वारे,
बृद्धा राधा दंड के सहारे।
प्रेम ने प्रेम को पहचाना त्वर,
कांहा बोले, राधा, माँगो वर!
दिनों -दिनों की प्यासी थी राधा,
बोली,कांहा तुम बिन मैं आधा।
बांसुरी बजाओ आज शाम को,
भर दो कांहा मम रिक्त जाम को।
कृष्ण ने ऐसी बंशी बजाई,
राधा पल- पल प्रभु में समाई।
राधा जब गोविंद में समाई।
कृष्ण ने बांसुरी फिर नहीं बजाई।
तोड़ी बंशी, फिर नहीं बजाई।I
–डॉ.गणेश पोद्दार
रांची

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
