काव्य : कान्हा को जन्म भयो – बिन्दु त्रिपाठी भोपाल

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कान्हा को जन्म भयो

कान्हा को जन्म भयो बाजत मृदंग।
भक्त सारे भजनों की लड़े हैं मानो जंग।
गली -गली ,द्वार द्वार तोरण भी सज रहे,
नाच रहे ग्वाल बाल टोलिन के संग।

कान्हा के जन्म की झाँकी भी सज रही,
घर औ मंदिर में ढोलक भी बज रही।
ग्वालन का भेष धर नाच रही छोरियाँ,
घंटी,नगाड़े और बंसी भी बज रही।
पावन है पर्व आज आई जन्माष्टमी,
सज गई कान्हा के पावों में पैजनी।
पीला वसन और श्यामल वदन है,
माथे पर मोर मुकुट, कटि पर है कछनी।
धूमधाम मच रही गली गली गाँव गाँव,
कान्हा के मंदिरों में ढूंढ रहे सभी छाँव।
मन में मृदंग बजे तन में है जोश भरा,
खुश हैं सभी जन थरा पर न पड़े पाँव।

बिन्दु त्रिपाठी
भोपाल

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