

हे कुञ्जबिहारी, है वंदना तुम्हारी
हे कुंजबिहारी, है वन्दना तुम्हारी,
हे मन मोहन, हे बाँके बिहारी,
हे गोवर्धनधर, हे भवभय हारी,
मैं आया हूँ अब शरण तुम्हारी।
हे कुंजबिहारी, हे कुंजबिहारी,
है वंदना तुम्हारी।
मोह माया में अटका भटका,
दुनिया भर से खाया झटका,
भक्ति भावना अब पायी न्यारी,
हे कुंजबिहारी, हे कुंजबिहारी,
है वंदना तुम्हारी।
चरण शरण मुझको दे दो अब,
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ अहंकार सब,
अनुराग प्रेम मुझमें भर दो हे वनबारी,
हे कुञ्जबिहारी, हे कुंजबिहारी,
है वंदना तुम्हारी।
तेरा रहस्य कौन जान पाया है,
गरीब नवाज तुम कहलाते हो,
मैं गरीब आया तेरे दर मुरलीधर,
हे कुञ्जबिहारी, हे कुंजबिहारी,
है वंदना तुम्हारी।
कान्हा भक्तों पर प्यार लुटाया है,
मैं आया हूँ बनकर भक्त भिखारी,
अब आ जाओ दो दर्शन मुझको,
हे कुञ्जबिहारी, हे कुंजबिहारी,
है वंदना तुम्हारी।
इंतज़ार कर परेशान हो गया हूँ,
समर्पण करने तुझे आ गया हूँ,
भक्तनाथ सुन लो अर्चना हमारी,
हे कुंजबिहारी,हे कुञ्जबिहारी,
है वंदना तुम्हारी।
भारत में हमारे अब राम राज्य हो,
यह सद्भाव ही अब सर्वभाव हो,
आदित्य भक्त बने ये दुनिया सारी
हे कुंजबिहारी, हे कुञ्जबिहारी,
है वन्दना तुम्हारी।
कर्नल आदि शंकर मिश्र,आदित्य
लखनऊ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
