काव्य : मेरे मनमोहना – ममता श्रवण अग्रवाल सतना

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मेरे मनमोहना

( 1)
मनमोहना मेरे मनमोहना,
आ ,जाओ आज मेरे आँगना।
चौक सजाऊँगी मैं सुंदर,
और बिठाउँ तुम्हें आसना
तब भोग बनाऊँ मैं रुचि रुचि,
बड़े स्वाद से तुम भी जीमना।।मनमोहना ,मेरे मनमोहन ….

(2)
आओ मोहन आ जाओ,
अब मेरे घर में आ जाओ।
मेरे घर के रूखे सूखे का
आकर भोग लगा जाओ।
तुम आओगे घर जब मेरे,
भर जाये भंडारे दाल, चना
मनमोहना,मेरे मनमोहना।
(3)
तेरे आने से मेरे मोहन,
कट जायेंगे पाप सभी।
तेरे दर्शन से मेरे मोहन,
मिट जायेंगे सन्ताप सभी
तुम आओगे तो मेरे मोहन,
तब शेष रहेंगे कष्ट कोई ना
मनमोहना ,मेरे मन मोहना।।
(4,)
तेरे आने से मन मोहन,
जीवन का सुख पाऊँगी।
सारे जीवन के दुखों से,
मुक्ति आज मैं पाऊँगी।
तुमको पाकर अब मन मोहन,
मन में रहे अब चाह कोई ना
मन मोहना ,मेरे मनमोहना

ममता श्रवण अग्रवाल
सतना

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