

मेरे नटखट गोपाल
जन्म हुआ था द्वापर युग में
देवकी की आठवी संतान थे
जनमे तो देवकी के गर्भ से
लेकिन खेले यशोदा के आंगन नंदलाल थे ll
कृष्ण की बाल लीला तो थी अनोखी
सभी गोपियाँ उन पर मोहित होती थी
बाल्यकाल से ही उन्होने प्रकट किया ऐसा अनुपम रूप
दिखा दिया श्री कृष्ण ने अपना दैविक होने का स्वरूप ll
पूतना, बकासुर जैसे अनेको राक्षओ का नाश किया
श्रीकृष्ण ने तो हमेशा ही अपने भक्तों के हृदय में वास किया
यमुना किनारे गोपियो के वस्त्र चुराते पकड़े गए
फ़िर भी सभी गोपियो और माताओ के लाडले रहे ll
जब कानो में धारण करते हैं मकराकृति के कुंडल
लगता है मानो कामदेव के हृदय पर हो गया है ध्वजारोहण
मुरली है श्रीकृष्ण के ऐसी साथी
उसके होने से उनके मुख की मुस्कान होती निराली ll
सिर पार मोर मुकुट धरन किये हुए
कितने शोभनीय लगते हैं कान्हा मेरे
अपने परमात्मा श्रीकृष्ण पर वारी जाऊँ
हर रूप में बस उन्ही के दर्शन पाऊँ ll
– सिद्धि केसरवानी,
प्रयागराज

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
