काव्य : गुरू – कविता नेमा “काव्या” सिवनी,मध्यप्रदेश

87

गुरू

मनहरण घनाक्षरी

देते शिक्षा वरदान ,
रूप दिखे भगवान ,
सीख देते नेक गुरू ,
*महिमा अपार है ।*

करें हम गुणगान ,
बनाते जो विद्यावान ,
अनुपम बुद्धि देते,
*करे बेड़ापार हैँ ।*

वंदना करें गुरू की ,
कृपा मिलती प्रभु की ,
संतापों को दूर करे,
*जग जयकार है।*

हैँ संस्कार सिखलाते ,
सत्य -मार्ग दिखलाते ,
अपने पुण्य ज्ञान से,
*करें उजियार हैँ।*

कविता नेमा “काव्या”
सिवनी,मध्यप्रदेश

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here