काव्य : ईश किरपा गुरु मिले – डॉक्टर शोभा त्रिपाठी लखनऊ

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ईश किरपा गुरु मिले

खींचता है , नापता है, मोड़ता है, बाँधता है। 
शिष्य  की  जीवन  प्रत्यंचा  सद्गुरु ही साधता है।

हम तो कच्ची मिट्टी केवल, थाप के करता वो  कोमल, 
चाक  पर   आकार  देता, आँच  में  फिर  तापता  है।

रख  कसौटी   ज्ञान  की,  कसता  हमें  वो   बानकी,
ज़िन्दगी  कुंदन बनाके   फिर  नगीने   साजता    है।

भ्रम का बादल जब भी छाता, बन दिवाकर गुरू ही आता,
दिगभ्रमों  को   दूर  करता, धोर – तम को  काटता है।

धूल  गुरु चरणों की  चंदन , करती  हूँ शत-शत मैं वंदन, 
ईश किरपा गुरु मिले,  गुरु  से  ही  ईश्वर  का  पता  है।

डॉक्टर शोभा त्रिपाठी
लखनऊ

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