काव्य : गुरु – रानी पाण्डेय, रायगढ छत्तीसगढ

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गुरु

जीवन मे समय से बड़ा गुरु नहीं
बुरा हुआ तो सबक सीखा जाता
अपने अन्दर झांकने का झरोखा
खोल जाता ,
कुछ कार्मिक चुकाने को
कुछ खुद को संवारने को
अकेला ही कर जाता
अच्छा हुआ तो सबक सीखने के
पुरस्कार दे जाता,
मुखौटे उतर जाते
कुछ लग जाते ,
जीने के तरीक़े
बदल जाते ,
आदतें बदल जाती ,
नए अध्याय जुड़ जाते,
पुराने पन्ने निकल जाते
नयी किताब से
हम कहाँ सीख पाते खुद से
सीखने का हुनर,
प्रकृति को
आना पड़ता है,
इंसानो के बीच
जीवन का गुरु बनने को,
नए नए पाठ पढ़ाने को I

रानी पाण्डेय,
रायगढ छत्तीसगढ

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