

लघु कथा
नेम- प्लेट
मनोहर जी,पेशे से हैं तो शिक्षक पर शौक है उन्हें पैदल
घूमने और नई नई जगहों पर बगैर सहायता और पूछताछ जाने का…!उनकी यह साहसिक यात्रा कभी परेशानी का कारण बन जाती. मई की चटकती धूप में एक बार निकल पड़े नए शहर को छानने.. गर्मी से बेहाल भटकते शहर के नज़दीक पहुंचे… कंठ प्यास से सूखा जा रहा था..शरीर भी थक कर चूर हो गया था.
दूर कुछ भवनों की श्रृंखला दिखाई दी तो जान में जान आई..!
प्यास से बेहाल मनोहर जी पहले भवन के समक्ष पहुंच आशा भरी नज़रों से देखने लगे.सामने आलीशान अट्टालिका,
विशाल प्रवेश द्वार, भारी नेम प्लेट…रवि प्रसाद ,एम. डी.(आई ए एस)मानव उपस्थिति का कोई आभास नहीं.. निराश भाव से मनोहर जी आगे बढ़े.. चार मंजिला भवन सामने मुह चिढ़ाती नेम प्लेट..डॉक्टर विश्वास, और तमाम डिग्रियों का वर्णन.. मिलने का समय और फीस का विवरण भी….प्यास का समाधान यहां भी नहीं हो सका..आगे बड़ा बंगला किन्ही पूर्व मंत्री जी का .. गार्ड ने
मनोहर जी की हालत देखते ही दूर रहने का इशारा कर दिया था..!
फिर कोई कॉन्ट्रेक्टर बिल्डर का महल ,परंतु दो आदम कद कुत्तों ने मनोहर जी के थके कदमों को गति प्रदान की और बेचारे लगभग घिसटते हुए उस नवनिर्मित उच्चवर्गीय आवासीय परिसर को पार कर बाहर आ गए..!
बाहर की ओर एक अपेक्षाकृत छोटा मकान था, दरवाजे पर खड़ा व्यक्ति जो मालिक भी था ,बड़ी देर से आगंतुक को देख रहा था। आगे बढ़ उसने पूछा ..नए आये हो भैया ..किसे ढूंढ रहे हो ?…मनोहर जी पहले उस व्यक्ति को फिर मकान को देख जिस पर कोई नेम प्लेट नहीं थी…आश्वस्त हो पानी का इशारा किया…मेजवान उन्हें हाथ पकड़ घर के अंदर ले गए..गुड़ और पानी देकर बोले… मैं भोलाराम ..ये मेरा मकान है, छोटा है पर पर्याप्त है ,अकेला ही रहता हूँ.. जल ग्रहण करने के उपरांत मनोहर जी की जान में जान आई…आंखे कृतज्ञता से भर आईं थी…भोलाराम के दोनों हाथ थाम धन्यवाद कर चलने को तत्पर हुए..भोला उनकी स्थिति देख बोला …आप थक गए हैं, कुछ खाया भी नहीं अब अंधेरा भी होने को है, नया शहर है.. कृपया भोजन प्राप्त कर रात्रि विश्राम यहीं पर करें.. प्रातः प्रस्थान करना उचित होगा..!
भोलाराम के अनुनय को मनोहर जी टाल न सके, भोजनोपरांत चर्चा में रत कब नींद आई पता न चला..,प्रातः
भोलाराम ने चाय के लिए आवाज़ लगाई तो प्रतिउत्तर न पाकर
भोला कौतूहल वश कमरे में गये देखा वहां आगंतुक नहीं है.. शायद बाहर हो ऐसा सोच दूर तक देख आये पर मनोहर जी नहीं मिले..आगंतुक मुझे और तकलीफ़ नहीं देना चाहते हों शायद इसलिए बग़ैर बताये चले गए.. इस विचार के साथ भोला अपने घर की ओर वापस हुए तो देखा दीवार पर नेम प्लेट की जगह कुछ लिखा है.. पास आये देखा वहां कोयले से लिखा था…..
“भोलाराम”
** एक इंसान-नेक इंसान **
भोला यह तो समझ गया कि आगंतुक ने लिखा है, पर किस आशय से ..समझ नहीं आया..आख़िर भोलाराम जो ठहरा…!
अशोक कुमार दीक्षित
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
