लघुकथा : रामू की सूझबूझ – भार्गवी रविन्द् .बेंगलूर

71

शिक्षक दिवस पर लघुकथा

रामू की सूझबूझ

भोला राम पेशे से मास्टर थे बस नाम ही भोला था पर काम व स्वभाव बिल्कुल विपरीत….उनकी अपनी ज़मीन जायदाद भी काफ़ी थी,इसलिए गाँव और पासपड़ोस की बस्ती में उनका रुतबा भी बहुत था ।वो मास्टर जी के नाम से जाने जाते थे ।उस इलाक़े में एक ही पाठशाला होने से गाँव के सभी बच्चों को मजबूरन वहीं दाख़िला लेना पड़ता था ।अपनी हवेली नुमा घर के एक तबेले में उन्होंने बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था की हुई थी ,पास पड़ोस के गाँव से ३०-४० बच्चे वहाँ पढ़ने आया करते थे।निःशुल्क शिक्षा योजना गाँव में होने के बावजूद ये काफ़ी पैसा किसी न किसी रूप में ले ही लेते मगर पढ़ाई के नाम पर ज़्यादा समय उनकी घर गृहस्थी के कामों में निकल जाता था।कुएँ से पानी भरना, बाजार जाना, तबेले के जानवरों के लिए चारा जुटाना, घर का कोई सदस्य बीमार हो तो उनकी तिमारदारी.. …सब इन बच्चों के सर पर थी …पढ़ाई तो बस नाम भर के लिए थी ।बच्चों के माँ बाप परेशान थे। डर के मारे कुछ कह नहीं सकते थे। कइयों की ज़मीनें गिरवी थी, तो कई के सर पर बेटी/बेटे की शादी या बीमारी पर लिये गए कर्ज का बोझ था। शिक्षक होकर अपने पेशे का खुलेआम अनादर कर रहे थे। हर बच्चे को दो दो साल एक ही कक्षा में रख छोड़ते ….मगर किसी की उनके खिलाफ शिकायत करना तो दूर आवाज़ उठाना भी मुश्किल था।उसी पाठशाला में एक मेधावी छात्र रामू भी था, उसमें पढ़ने की लगन थी।वो मेहनत कर एक नेक और ईमानदार अफ़सर बन अपने गाँव को आगे बढ़ाना चाहता था। वहाँ के बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा,खेलकूद के लिए मैदान और सामग्री, स्वास्थ्य केंद्र आदि सुविधा लाना चाहता था, मगर ये संभव नहीं था ।वो हमेशा सोचता रहता कि ऐसा कुछ चमत्कार हो जाए और मास्टर जी की पोल खुल जाए। वह रात दिन मेहनत करता और अपने साथियों को भी शिक्षा के महत्व को समझाता।एक दिन उस गाँव में वहाँ के शिक्षा विभाग से एक उच्च अधिकारी निरीक्षण के लिए आए, रामू को मालूम था यदि वह अब डरकर पीछे हट गया तो उसके गाँव का एक भी बच्चा सही शिक्षा पाकर तरक़्क़ी नहीं कर पाएगा । बस उसने ठान ली वह उन अधिकारी से जरुर अपनी व अपने साथ सभी बच्चों के भविष्य के लिए मास्टर जी की करतूतों को जरुर उजागर करेगा।इधर मास्टरजी ने शाम को सब बच्चों को बुला भेजा।पहले प्यार से फिर सख़्त लहजे में समझाया कि अधिकारी के सामने सबको साफ़ सुथरे कपड़े पहनकर आना होगा ,कापी ,स्लेट सब लेकर ९बजे शाला में उपस्थित हों।रामू को ख़ासकर चेतावनी दी कि अधिकारी के पूछे गए सवालों का उसने ठीक जवाब नहीं दिया तो उसकी ख़ैर नहीं….साथ में सख़्ती से निर्देश दिया कि “ मेरी शाला “ पर एक सुंदर लेख लिख कर सब बच्चे ले आए…मास्टर जी उसे उन अधिकारी को देना चाहते थे ताकि उनपर कोई कार्यवाही न हो वरन उन्हें पुरस्कार दिया जाए…मगर रामू ने सोच रखा था कि उसे क्या करना है।

सुबह हुई, अधिकारी जी शाला के परिसर में विराजमान थे और उनके साथ मास्टरजी भी …उन्होंने बच्चों से उनकी पढ़ाई व अन्य गतिविधियों के बारे में पूछा तो सब बच्चे चुपचाप खड़े रहे ।अंत में मास्टरजी ने अपनी लाज रखने के लिए बच्चों के लिखे हुए लेख का पर्चा जमाकर अधिकारी को थमा दिया बिना देखे भाले.…..जैसे ही अधिकारी ने खोलकर देखा तो वो दंग रह गए।सभी पर्चे ख़ाली थे, सिर्फ़ रामू ने स्पष्ट लिखा था जो कुछ उस शाला में घोटाला चल रहा था ।पढ़कर वो सब समझ गए और बड़े अधिकारी से शिकायत की।…देखते ही देखते मास्टर जी के सारे अधिकार छीन लिए गए, घर भी ज़ब्त कर लिया गया और तुरंत नौकरी से बाहर कर दिया गया ।

अब मास्टरजी को अपनी करनी का फल मिला , उनके परिवार वालों को भी उनके कारण मानसिक,शारीरिक व आर्थिक वेदना सहनी पड़ी ।रामू की सूझबूझ से बच्चे अब सही और अच्छी शिक्षा पाने लगे और बेचारे मास्टर जी….उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ी, उन्हें अपनी करनी का फल भुगतना पड़ा।

शिक्षक ही सच्चा, ईमानदार व अपने कर्तव्यों के प्रति जागरुक न हो तो वो बच्चों के जीवन में क्या सुधार ला सकेगा और हमारे देश के भविष्य का क्या होगा …हम सोच ही सकते हैं ।

भार्गवी रविन्द्
.बेंगलूर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here