काव्य : शिक्षक दिवस – सुषमा वीरेंद्र खरे जबलपुर

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शिक्षक दिवस

ज्ञानी गुणी जो हम कोबनाते ,
नीति निपुणता का पाठ पढ़ाते।
सच्ची राह पर हमको चलाकर,
भाग्य विधाता शिक्षक कहलाते।।

कभी प्यार से तो कभी मार से,
कभी डांट से कभी पुचकार से।
वदी से बचना और नेकी करना ,
यह हमको शिक्षक ही सिखलाते।।

उनके बिना हम कुछ भी नहीं हैं,
माटी का एक ढेला सा कहीं हैं।
ग्यान की ज्योति जलाकर मन में ,
इनसे उरिण हम होते न कभी हैं।।

नमन करूँ नित चरणों इनके
भविष्य हमारा बनता यहीं हैं।।

सुषमा वीरेंद्र खरे
जबलपुर

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