

लघुकथा
लाचार चिड़िया
आज शिक्षक दिवस सब तरफ शुभकामनाओं का दौर चल रहा था ! सही भी है माँ बाप के बाद गुरु का ही महत्व होता है बच्चे की जिंदगी में ! रूमा घर की खिड़की पर बैठ कर अपने अतीत में खो गई !
रूमा एक प्यारी सी अवोध नटखट बच्ची थी ! माँ की लम्बी बीमारी ने उनको बिलकुल अपाहिज बना दिया था ! पापा अपनी दुकान पर व्यस्त रहते थे ! माँ को रूमा की बहुत चिंता रहती थी ! रूमा जिस स्कूल में पढ़ती थी उसकी अध्यापिका नीरू से रूमा की माँ की बहुत अच्छी दोस्ती थी !वह भी रूमा को बहुत प्यार करती थी ! धीरे धीरे रुमा बड़ी होने लगी !
पढ़ाई का बोझ भी बढ़ने लगा ! माँ के कहने पर नीरू ने रूमा को साइंस पढ़ाने के लिए एक टीचर अजय की व्यवस्था करदी ! शुरू से वह रूमा को पसंद नहीं था क्योकि उसकी नजर रूमा को पसंद नहीं थी ! अजय की हरकतें दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी ! रूमा ने कई बार माँ को बताने की सोची पर भयवश बता नहीं पाई क्योंकि वह नहीं चाहती कि मां बीमारी हालत में और परेशान किया जाये पर इसी बात का लाभ अजय ने उठाया और एक दिन उस बाज ने उस नन्ही चिड़िया को दबोच लिया ! वह उसके पंजे में फड़फड़ाती रही । इस घटना ने उसको भीतर तक तोड़ दिया और वह बिलकुल चुप हो गई ! बहुत हिम्मत करके उसने माँ को बताया माँ ने उसे चुप रहने को बोला और कहा कि इससे समाज में बहुत बदनामी होगी इसलिए चुप रहो और उसने मौन साध लिया । उसकी नजरों में शिक्षक का बहुत गलत अक्स था ।
आज भी वह उस मानसिक यातना को झेल रही थी , और ईश्वर से प्रार्थना करती कि कोई भी शिक्षक किसी भी चिड़िया को ना दबोचे और गुरु मर्यादा का पालन करे ।
– डॉ मधु आंधीवाल
अलीगढ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
