

ग़ज़ल
जाने अब क्या से क्या मामला हो गया|
ख़ूबसूरत था अब जलजला हो गया|
अब यतीमों का कुछ भी तो होता नहीं,
जो है रहजन उसी का भला हो गया|
वो तो कितने दफ़ा ज़ख्म है खा चुका,
दूध का वो तो आखिर जला हो गया|
दे पनाहें जिसे था उठाया मगर,
आज वो ही मगर अब बला हो गया|
जो मुसाफ़िर रहा नेकदिल भी मगर,
वक के साथ वो मनचला हो गया|
ज़िल्लतों का मुसलसल भी आना रहा,
ऐसा लगता कि इक सिलसिला हो गया|
थी ज़रूरत नहीं पर नवाबी हुई,
मिल्कियत का तो ध्रुव फ़ैसला हो गया|
प्रदीप ध्रुव भोपाली
भोपाल मध्यप्रदेश

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
