काव्य : ग़ज़ल – प्रदीप ध्रुव भोपाली भोपाल

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ग़ज़ल

जाने अब क्या से क्या मामला हो गया|
ख़ूबसूरत था अब जलजला हो गया|

अब यतीमों का कुछ भी तो होता नहीं,
जो है रहजन उसी का भला हो गया|

वो तो कितने दफ़ा ज़ख्म है खा चुका,
दूध का वो तो आखिर जला हो गया|

दे पनाहें जिसे था उठाया मगर,
आज वो ही मगर अब बला हो गया|

जो मुसाफ़िर रहा नेकदिल भी मगर,
वक के साथ वो मनचला हो गया|

ज़िल्लतों का मुसलसल भी आना रहा,
ऐसा लगता कि इक सिलसिला हो गया|

थी ज़रूरत नहीं पर नवाबी हुई,
मिल्कियत का तो ध्रुव फ़ैसला हो गया|

प्रदीप ध्रुव भोपाली
भोपाल मध्यप्रदेश

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