

शिक्षक दिवस पर
शिक्षक माने मोमबत्ती है
शिक्षक माने मोमबत्ती है
जिसकी अपनी भी मस्ती है।
जलकर स्वयं प्रकाश देता है,
शिक्षक ऐसी अद्भुत शक्ति है।
बाग का माली है ।
करता रखवाली है।
कमाई न काली है।
न कोई बहाली है।
ऐसी फसल उगाता है।
स्वाद नही पाता है।
फिर भी इतराता है।
फसल कोई ले जाता है।
यही उसकी हस्ती है।
शिक्षक माने मोमबत्ती है।
बनता न ज्ञानी है।
सुनाता कहानी है।
हर समस्या सुलझाता है।
सबको गले लगाता है।
सबसे उसका नाता है।
कौन उसे समझपाता है।
स्वयं जलकर सबको समझाता है।
स्वयं का जीवन बलिदान कर जाता है।
यही उसकी मस्ती है।
शिक्षक माने मोमबत्ती है।
माली की हर बात न्यारी है।
हर फूल से उसकी यारी है।
हो बेला गुलाब या जूही,
अर्थात उसकी पूरी फुलवारी है।
हरी दूब के घावों को शिक्षक
पानी दे सहलाता है।
इसीलिए वह सम्मानित है,
सबके दिल मे बस जाता है।
शिष्यो को पार, लगाने वाली कश्ती है।
शिक्षक माने मोमबत्ती है।
अपना जीवन परस्वार्थ पर लुटाता है।
शिक्षक को हर कोई कहां समझ पाता है।
प्रतिस्पर्धा में छात्रों से हार जाना चाहता है।
स्वयं हारकर हमेशा को जीत जाना चाहता है।
“निर्मल” शिक्षक नियम की नस्ती है।
शिक्षक माने मोमबत्ती है।
सीताराम साहू”निर्मल”
छतरपुर
शिक्षक

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
