काव्य : हर जन्म शिक्षिका बनना चाहती हूँ – अनिता मंदिलवार सपना अंबिकापुर

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हर जन्म शिक्षिका बनना चाहती हूँ

शिक्षक दिवस पर मैं यहाँ
एक बात कहना चाहती हूँ
जब भी धरा पर जन्म लूँ मैं
शिक्षिका बनना चाहती हूँ

वर्तमान की गलियों से
भविष्य के ख्वाब सजाती हूँ
कोरे कागजों पर लिख उदगार
उन्हें सुंदर पुस्तक बनाती हूँ

‘अ’ अनार से शुरू कर
‘ज्ञ’ ज्ञानी तक पहुँचाती हूँ
शिक्षिका बनकर यहाँ
ज्ञान का पाठ पढ़ाती हूँ

चंद्रमा तक जाने की
सीढ़ी तैयार करवाती हैं
सपना देखने से लेकर
पूरा होने तक मार्ग दिखाती हूँ

शिक्षा देने से पहले मैं उन्हें
अपने ऊपर आजमाती हूँ
इच्छाएँ त्याग कर अपनी
कभी नहीं जतलाती हूँ

सुंदर-सुर सजाने को
कभी तो साज बनाती हैं
नौसिखिए परिंदें को यहाँ
मैं बाज बनाती हूँ

चुपचाप सुनती हूँ
शिकायतें सबकी देखो
दुनिया बदलने को यहाँ
अरमान सजाती हूँ

अनिता मंदिलवार सपना
अंबिकापुर सरगुजा छत्तीसगढ़

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