काव्य : रक्षा बंधन के अलग अलग रंग – सुरेश गुप्त ग्वालियरी विंध्य नगर बैढ़न,सिंगरौली

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रक्षा बंधन के अलग अलग रंग

1
इसे मात्र धागा न समझो ,यह प्रेम का बंधन है,
माथे पर जो तिलक है तेरे, वह महकता चंदन है!
भाई बहिन का प्यारा रिश्ता,सब रिश्तों से ऊंचा है,
हर बहिना को भाई लगता,आज यशोदा नंदन है!!

2
कभी याद आती झगड़ों की,आंसू भर आते है,
बचपन की यादों के जब, सैलाब उमड़ जाते हैं!
मारा पीटी छीना झपटी,कितना सुंदर था,
इस राखी के प्यारे धागे , अब याद दिलाते हैं!!

3
नही बहिन की चाहत भैया, पैसा और रुपैया ,
जब भी बहिना याद करे, आना बने
कन्हैया !
बालापन सी चोटी पकड़ो, मुझ पर
धौंस दिखाओ,
बस इतनी सी चाहत मेरी,भूलें कभी
न भैया !!

4
रिश्तों का यह मीठा बंधन,ज्यों खुशबू औ चंदन ,
भाई भतीजा,बहिन भांजा ,यह प्यारा सा बंधन!
थाल सजाकर ननदी आती, जब भाभी के द्वारे,
कहकहों में भर जाता है,फिर प्यारा सा बचपन!!

सुरेश गुप्त ग्वालियरी
विंध्य नगर बैढ़न,सिंगरौली

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