कहानी : उपहार – सुमन चन्दा लखनऊ

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उपहार

बैठक में लगातार फोन की घंटी बज रही थी। नीना अपने कमरें में किसी कार्य में व्यस्त थी और मोबाइल बैठक में रख भूल गयी थी। छोटी बहन समीरा दौड़ती हुई मोबाइल लेकर नीना के पास आई और बोली-रत्नेष भाई लाइन पर हैं। नीना के फोन सुनते ही रत्नेष बोला, बहन नीना मुझे तुम्हारी भेजी लाल डोरी वाली राखी इस बार भी समय से मिल गई है। कल रक्षाबंधन है मैं उसे जरूर बॉंध लूंगा। तुम्हारा उपहार मैं ऑनलाइन भेज दूंगा। नीना चहकती हुई बोली – भाई आप कुछ भी मत भेजना, आपकी आवाज सुन ली ये ही मेरा बड़ा गिफ्ट है।
कुछ वर्षो पूर्व रत्नेष नीना के घर के आगे की गली में किराए का कमरा लेकर पढ़ाई करता था। उसका सपना सेना में भर्ती होने का था। अचानक किसी आवेदन पत्र व कागजातों के सत्यापन हेतु उसे गजेटेड अधिकारी से मिलना था। उसके मकान मालिक ने उसे नीना के पिताजी के पास भेज दिया। नीना के पिता रत्नेष को देखते ही बोले बेटा कहॉं रहते हो? तुम्हे तो मैंने कई बार समाचार पत्र व प्रतियोगिता दर्पण खरीदते मुन्ना की दुकान पर देखा है। कहां के रहने वाले हो? रत्नेष ने उन्हे डाक्यूमेंट देते हुए बताया कि उसके पिताजी का स्वर्गवास हो चुका है व मॉं गांव में रहती है और उसके कोई भाई-बहन भी नहीं है। नीना ने जैसे ही यह सुना तो वो दौड़कर एक लाल, रेषमी धागा ले आई और उसे रत्नेष की कलाई में बॉंध दिया।
रत्नेष ने बड़ी मेहनत की और एन.डी.ए. की परीक्षा उर्त्तीण कर ट्रेनिंग हेतु खड़कवासला, पुणे चला गया। छुट्टियो में वह जब भी गांव आता तो रायपुर नीना से मिलने जरूर जाता। नीना साइंस की स्टूडंेट थी, होषियार भी। रत्नेष उसके लिए उपहार में पुस्तके लाता। नीना ने नागपुर के एक रिसर्च इंस्टीट्यूट में ज्वाइन कर लिया। उधर रत्नेष की पोस्टिंग कष्मीर में हो गयी थी और वह अब कैप्टन रत्नेष था। समय के साथ दोनो भाई बहन का प्रेम बहुत प्रगाढ़ हो गया था। इसी बीच नीना का विवाह डॉ0 वैभव से तय हो गया।
कल रक्षाबंधन है, रत्नेष ने सोचा त्योहार के तीन दिन बाद नीना की सगाई है इस वजह से रायपुर जाने के लिए उसने पॉंच दिन का अवकाष भी स्वीकृत करा लिया। रत्नेष खुष था।
बारिष का मौसम था। घनघोर वर्षा सभी राज्यो में हो रही थी। रत्नेष नीना की भेजी राखी बॉंधकर स्टेषन को निकलने ही वाला था कि उसे वायरलेस पर सूचना दी गई कि भयंकर वर्षा/भूस्खलन से हिमाचल प्रदेष और उत्तराखण्ड में तबाही मची हुई है। मार्ग अवरूद्ध है, यात्री/सैलानी का नाता टूट गया है कई जगह पुल और रास्ते ध्वस्त हो गये है तुरन्त अपनी बटालियन लेकर पहुॅचो तुम्हारी छुट्टी कैंसिल। कैप्टन रत्नेष तुरन्त अपने यूनिट के साथ षिमला प्रस्थान कर गया और बचाव करने लग गया। इण्डियन आर्मी के द्वारा रेस्क्यू और रिलीफ आपरेषन में रत्नेष दिन-रात जुटा रहा। टूटे पुलो की आवष्यक मरम्मत, मजबूत रस्सी के माध्यम से सैकड़ो सैलानियो को सुरक्षित स्थानो पर पहुॅंचाना, हैलीकॉप्टर की सौरटीज से बुजर्गो और महिलाओं को सुरक्षित पहुॅंचाना, सड़को को आवागमन हेतु खुलवाना इस पूरे ऑपरेषन देव भूमि में रत्नेष को पॉंच दिन षिमला में ही रहना पड़ा। इस रेस्क्यू ऑपरेषन में रत्नेष बुरी तरह जख्मी भी हो गया। षिमला कमांड हास्पिटल में रत्नेष का इलाज चला, जब वह डिस्चार्ज होकर अस्पताल से निकल रहा था कि अचानक उसके सामने एक कार आकर रूकी जिसमें से नीना अपने मंगेतर डॉ वैभव के साथ उतरी और दौडकर रत्नेष के गले लग गई। रत्नेष बोला मुझे क्या हो सकता था मेरी कलाई पर तुम्हारी राखी जो बंधी थी। इस भागदौड में मैं तुम्हारे लिए उपहार न ला सका, माफ करना। नीना बोली रत्नेष तुमने इस विपदा के समय सैकड़ो लोगो की जान बचाई उन्हें सहायता प्रदान की उनके होठो की खुषी ही मेरा उपहार है। डॉ वैभव ने कैप्टेन रत्नेष को सैल्यूट करते हुए गले लगा लिया। यह दृष्य देख नीना के पिता भाव-विभोर हो उठे और उनका हाथ खुद-ब-खुद बच्चो को आर्षीवाद देने के लिए उठ गया।

सुमन चन्दा
लखनऊ

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