काव्य : रक्षाबंधन – नितिन कुवादे झिरन्या जिला खरगोन

114

रक्षाबंधन

कच्चे धागे से बनी रेशम की डोर
प्यार मीठी शरारतो का आया दौर,

बचपन के वो पल फिर से आ गए,
बहना का सारा प्यार हम पा गए,,

बहन का स्नेह, भाई की होंगी प्रीत,
मंगल कामना के बहन गाने लगे गीत,,

होंगे जग के सारे मिष्ठान एक तरफ
होंगी बहना की मुस्कान एक तरफ,

भाई बहन की प्रीत का पावन बंधन,
सारा जग करता आया इसको वंदन,,

सुने आंगन मे फिर से बहार आ गई,
बहना जो आज़ भाई के द्वार आ गई,

माँ भी हुई पुलकित, पिता हुए हर्षित,
बजने लगे आँगन मे खुशियों का संगीत,,

कभी खट्टी, कभी मीठी करे तकरार,
बचपन की यादो की लेकर आई बहार,,

कभी हसना, कभी रूठना चलता रहे,
बहन करने लगे मनुहार भाई एठता रहे,,

पहन नये नये कपडे, आसन को पकड़े,
बचपन के उन पलो को फिर से जकडे,,

राखी से सजाके भाई की सुनी कलाई,
मिल बाट खाते थे जी भर के मिठाई,,

भाई के स्नेह का दीप सदा जलता रहे,
बहना का विजय तिलक रक्षा करता रहे,,

रोशन रहे खुशियों से भाई का संसार,
बहना के लिए यही है अनमोल उपहार,,

स्नेह की थाली मे आशाओ के दीप जले,
रेशम की डोरी मे प्यार की सरगम चले,

लड़ाई मे भी छुपी रहे भाई की भलाई,
कैसे कोई कह दे फिर बहने होती है पराई,,

प्रेम ही प्रेम हो भाई बहन मे, ना हो लड़ाई,
सभी को कर वंदन, दू रक्षाबंधन की बधाई…

नितिन कुवादे
झिरन्या जिला खरगोन मध्यप्रदेश

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here