काव्य : हैप्पी रक्षाबंधन – प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान सागर

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हैप्पी रक्षाबंधन

अटूट आस का बंधन है रेशम की नाज़ुक डोर में ।
भाई-बहन का प्यार बँधा है इस प्यारी सी डोर में ।
पावन प्रेम का दिव्य प्रतीक है रक्षा का विश्वास है
यही डोर है रक्षाबंधन भैया बहनों के लिए खास है

इसी डोर से खिंचकर बेटी पीहर को दौड़ी आती है
यही डोर भाई बहन को एक दूसरे से मिलवाती है
परदेस में बैठे भाई बहन की यादें ताजा कर जाती है ।
कभीएकांतमेंआँसूबनकरआँखोंसे छलकभीजाती है

यही डोर है रक्षाबंधन जो दिव्य प्रेम का प्रतीक है ‌
यमराज को चुनौती देने वाला रक्षा-कवच सटीक है ।
भैया बहनों की आस का धागा कहलाता है रक्षाबंधन
पारिवारिक मधुर मिलन का ये प्यारा सा गीत है ।

रक्षाबंधन पर्व की सबको अनंत शुभकामनाएँ
दुनियाभर के भाई बहन की कटती रहें सभी बलाएँ
बना रहे प्यार भाई-बहनों का जब तक साँसे चलती हों
सूनी रहे न कोई कलाई न किसी की भी आँखे नम हों
हैप्पी रक्षाबंधन सभी भैया बहनों के लिए।

प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान
सागर मध्यप्रदेश

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