काव्य : बहन की आरजू – दीप्ति खरे मंडला

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बहन की आरजू

तुमसे भैया बस इतना चाहूं,
रिश्तों का मान सदा ही रखना।
माना दुनियां अलग तुम्हारी,
पर राखी की रीत सदा निभाना।।

साथ बिताए जो पल हमने,
उनको तुम न कभी भुलाना।
व्यावहारिकता का पहन मुखौटा,
बचपन अपना भूल न जाना।।

माता पिता का साया बनकर,
मायके का नाम बनाए रखना।
बाट निहारूंगी मैं भैया,
रक्षाबंधन पर मुझे बुलाना।।

न तोहफा न दौलत चाहूं ,
रक्षा का भी वचन न मांगू।
राखी है एक प्यार का बंधन
इस बंधन से कभी मुक्त न होना।।

दीप्ति खरे
मंडला(मध्य प्रदेश)

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