

एक शाम दीप्ति सक्सेना के नाम
बदायूँ।
हिन्दी काव्य मंच द्वारा कवयित्री एवं लेखिका दीप्ति सक्सेना को जयपुर में प्रतिष्ठित मुंशी प्रेमचन्द सम्मान से सम्मानित होने पर उनके आवास जवाहरपुरी बदायूँ में बधाई दी गयी एवं सम्मानित किया गया। राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में दीप्ति सक्सेना ने गोदान की समीक्षा में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त किया था।
बदायूँ हिन्दी काव्य मंच के पदाधिकारियों एवं कवि गण द्वारा शुभकामनाएँ-सम्मान प्रदान करने के पश्चात काव्यदीप हिन्दी साहित्यिक संस्थान की संस्थापिका होने के नाते दीप्ति सक्सेना ने एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया। सर्वप्रथम मंच संचालक सुनील शर्मा समर्थ द्वारा गणेश वंदना की गई तत्पश्चात दीप्ति सक्सेना द्वारा सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री कामेश पाठक जी ने की। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए सर्वप्रथम शैलेश मिश्र देव ने पढ़ा-“नज़र अक्सर परखने में तो धोखा खा ही जाती है,
मगर ठोकर लगे तो अक्ल गिर कर आ ही जाती है।
संभल जाना जरूरी है अगर गलती हुई हमसे ,
करे हर बार जो गलती बुराई आ ही जाती है।”
इसके बाद प्रसिद्ध कवि सुनील शर्मा समर्थ ने मुक्तक सुनाकर वाहवाही बटोरी-
“प्यार के सिलसिले अब बचे भी नहीं।
अब तोआएं नजर गुल खिले भी नहीं।
उलझनें मुश्किलें नफरतें तो मिलीं।
तार दिल के किसी से मिले भी नहीं।”
वरिष्ठ कवि श्री कामेश पाठक जी ने अपनी ओजस्वी वाणी में भारत की जय जयकार की-
“समय ने करवट बदली है अब नया सवेरा आएगा
कुछ ही दिन में भारत फिर से विश्व गुरु बन जाएगा
विश्व पटल पर भारत माँ का गूँज उठा जयकारा है
जोर-जोर से कहो गर्व से अब तो चाँद हमारा है”
दीप्ति सक्सेना ने श्री कृष्ण द्वारा आयोजित महारास पर अपना गीत सुनाया-
“बृजबालायें हार गयीं मन, नाचें कृष्ण मुरारी।
निधिवन ने सुध-बुध बिसरायी, रास रचें बनवारी।।”
इसके अतिरिक्त कवि जयवीर सिंह चन्द्रवंशी, कवयित्री अंजलि श्रीवास्तव, कवि अचिन मासूम, शायर विकास सक्सेना साहिल बदायूँनी और कवि गौरव सक्सेना ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से श्रोताओं के मन मोह लिया।
इस अवसर पर काव्यदीप की संयोजिका मंजु सक्सेना ‘मंजुल’, सह-संयोजक आलोक शाक्य, सुरेंद्र कुमार मौर्य, ओम कुमारी, सुनील राठौर, सोनी, मयंक राठौर, दिव्यांशी, राजकुमार आदि श्रोतागण के रूप में मौजूद रहे।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
