काव्य : चांद का टुकड़ा,अपना-अपना दुखड़ा -वंदना दुबे,धार

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इसरो ने चंद्रमा के साउथपोल पर सफलता पूर्वक विक्रम यान उतार कर विश्व की एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है ।
सन 2015 में भी भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर तिरंगा फहराया था। तब सुनीता विलियम्स जो अपने साथ समोसे ले गई थीं, चांद पर बैठकर उन्होंने समोसों का आनंद लिया ।
उसी समय लिखी एक रचना आज स्मरण हो आई जो कुछ इस प्रकार है –

चांद का टुकड़ा,अपना-अपना दुखड़ा

जबसे चंद्रमा पर तिरंगा फहराने की खबर धरती पर आई है,
मान्यता और कल्पना लोक में अजीब-सी मायूसी छाई है ।

नवीन विचारकों तथा वैज्ञानिकों में हर्ष का अतिरेक है,
तो ज्योतिष, कल्पना व मान्यता के मस्तक पर चिंता की गहरी रेख है ।

जिन कवियों ने चांद की सुन्दरता पर कसीदे कसे थे,
पन्ने-के-पन्ने अपनी कलम से घिसे थे,
दूर चांद पर, चरखे वाली बुढ़िया, अब नजर नहीं आती है,
गुरुत्वाकर्षण बिना हर वस्तु, वहां नब्बे का कोण बनाती है ।

चंद्र-मंगल अभियान ने ज्योतिषों पर भी भारी तुषारापात किया है,
पोथी-पत्रा समेट वो नए काम की तलाश में जुटा हुआ है
चंद्र-मंगल दोष अब किसी को भयभीत नहीं करेगा
राहू-केतु-शनि से, अब भला कौन डरेगा?

जिन प्रेमियों ने चांद-तारे तोड़ लाने के सब्जबाग दिखाए थे,
नासा की खबर ने अब उनके भी होश उड़ाए थे ।
अब चांद की उपमा, सजनी को रिझा नहीं पाएगी,
क्योंकि वह आधुनिका तो चांद की छाती पर ही झंडा खड़ा कर आएगी ।

करवा-चौथ पर सुहागन का पति मन-ही-मन शर्माएगा,
छलनी में पत्नी को अब कौन-सा मुंह दिखाएगा ?
चंद्रोदय की सूचना दे, पत्नी का व्रत कैसे तुड़वाएगा
क्योंकि चांद से आती समोसों की खुशबू से, अब पत्नियों से ही कहाँ व्रत रखा जाएगा।

वंदना दुबे,धार

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