काव्य : बेटियों की पुकार – भुलक्कड़ बनारसी बनारस

101

बेटियों की पुकार

जाने क्या कसूर जान आँख खोल देखों जरा,
हर घर में ही तो सताई जाती बेटियां।

बेटा को तो जानते सकल परिवार वाले,
बढ़ पाएं आगे न रूलाई जाती बेटियां।

भ्रम से बची तो फिर कष्ट झेलती वो रहीं,
परदे की आड़ में छिपाई जाती बेटियां।

पैसा के लिए हर ओर कहीं कहीं देखों,
घर में ही मार कर जलाई जाती बेटियां।
(2)
माँ भ्रूण बीच मार कौन सा सुख पाई बोलों,
कमी क्या हमारी देखी भ्रूण में बताइएं।

रूप रंग माता कुछ देख नहीं पाई मेरी,
फिर भी मार डाली दोष मेरी गिनाइएं।

तेरे दुख सुख में हमेशा मैं ही साथ देती,
पर मार डाली क्यों जरा सा समझाइएं।

भाई का हमारे हाथ राखी बिन सूना की हो,
तुम भी तो बेटी रहीं मत भूल जाइए।
(3)
बेटा बेटा कह रही जरा सा बताना हमें,
सब ऐसे होवें फिर बहू कैसे लाएगी।

कैसे शहनाई बजे आंगन बीच तुम्हारे,
कब कैसे स्वप्न एक सुंदर सजाएगी।

आए न बहू तो फिर सेवा तेरी कौन करें,
मर्ज कोई आए तो तड़प रह जाएंगी।

बेटे से न बेटे का विवाह कहीं होते सुना,
स्वयं बताओ नाती पोता कैसे खेलाएंगी।
(4)
काट काट कैची से जो हमको निकाल फेंका,
फिर कभी सुधि लेने द्वार पे न आएगा।

रोगी होगी तुम जो शरीर बरबाद किया, खुशी न कभी ओ फिर तेरे लिए लाएगा।

पिता समझाए नहीं तुमको न मना किए,
बेटा बेटा बोलोगी दवा न लेने जाएगा।

क्रोध में बोली तो वो जबाब ऐसा देगा तुम्हें,
तेरा मन अंदर से ही खिन्न हो जाएगा।
(5)
विनती हमारी फिर आती तेरी भ्रूण में मैं,
इस बार मुझपे न छूरी चलवाइए।

इस बार भाई की कलाई नहीं सूनी रहें,
विनती हमारी एक बार मान जाइए।

सुखी मैं बनाऊँगी बातों पर यकीन करों,
हठ तोड़ देना मत पाप अपनाइए।

बिटियां से मिलेगा दामाद व नाती नतिनी,
हर्ष में भुलक्कड़ हो प्रेम पसराइए।

हास्य व्यंग्य कवि
भुलक्कड़ बनारसी
बनारस

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here