समीक्षा : भास एवं कालिदास के कथात्मक कल्पना बिम्बों का तुलनात्मक अध्ययन करती है लेखिका डाॅ वीना गर्ग की पुस्तक -समीक्षक-सुनीता मलिक सोलंकी,मुजफ्फरनगर

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समीक्षा
भास एवं कालिदास के कथात्मक कल्पना बिम्बों का तुलनात्मक अध्ययन करती है लेखिका डाॅ वीना गर्ग की पुस्तक -समीक्षक-सुनीता मलिक सोलंकी,मुजफ्फरनगर

कुछ दिन पूर्व मुझे मुजफ्फरनगर की साहित्यकारा डाॅ वीना गर्ग / सेवा निवृत्त टीचर प्रिंसिपल जो संस्कृत भाषा की पारंगत विद्वान हैं ।उनकी थीसिस बुक ” भास एवं कालीदास के तुलनात्मक बिम्बों का तुलनात्मक अध्ययननामक पुस्तक ” मुझे डाॅ वीना गर्ग जी के कर कमलों से प्राप्त हुई थी । जिसका अध्ययन मैं लम्बे समय से कर रही हूँ क्यूं कि जिन दो कवियों का तुलनात्मक बिम्ब डाॅ साहिबा ने बिम्बित किया है, वह अत्यंत गहन व गूढ़ रहस्यात्मकता लिए है । वीना जी ने कितनी गहन तल्लीनता से दोनों का अध्ययन किया और डाॅक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की।
मुझ जैसी कनिष्क लेखिका गर इसे पढ़ने की हिम्मत कर पाई… तो वो इसलिए कि मैने भी बाहरवीं कक्षा तक संस्कृत विषय को पढ़ा है।

इससे पूर्व आपके और भी कयी काव्य संग्रह पाठकों के मध्य आ चुके हैं । जिनमें एक बाल काव्य संग्रह ‘गुडिया’ हाल ही में विमोचन हुआ और मैने भी पढ़ा है। जिसमें बच्चों की बाल सुलभ भाव भंगिमाओं को बडी सहजता व विनम्रता से संयोजित किया गया है ।

आपके कयी काव्य संग्रह की कविताएं जो मैने पढ़ी एक अलग ही रोचक भावार्थ लिए होती है। आपके एक दो गीत जो कि- बहन -भाई के प्रेम के लिए हैं,इतने सुन्दर भाव में लिखे गये कि जब जब मैने आपके मुख से यह गीत सुने, तो मैं रोये बिना नही रह पाई।शायद यह दर्द वह महिला तो बखूब जान जाती है, जिसने भाई खोया होता है। आद्योपांत अध्ययन करने पर स्पष्ट है कि वीना जी की लेखनी विविध विषयों पर चली है स्वभावतः कवि संवेदनशील होते हैं।
कविमना से जीवन का, आस-पास के परिवेश का ,अन्तश्चेतना का कोई भी विषय अछूता नहीं रहता ,

डॉ वीना गर्ग जी संस्कृत विद्वान है इन्होंने संस्कृत में एम.ए. की डिग्री ग्रहण की है लेखिका ने बताया कि मेरे पिताजी श्री मोहनलाल प्रभाकर जी ने संस्कृत में मेरी रुचि देख मेरा उत्साह बढ़ाया और मुझे सहारनपुर के मुन्नालाल गर्ल्स कॉलेज से मास्टर कराई, आपने प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल कर मां-बाप का वह अपने कॉलेज का नाम रोशन किया। वीना गर्ग जी को प्रथम स्थान मिलते ही उनका मनोबल बढ़ गया और अपनी लगन व मेहनत से डॉक्टर साहिबा शोध कार्यों में लग गई, इस बीच B.Ed की डिग्री के तुरंत बाद शोध की तैयारी में जुट गई, लेकिन जिन प्रोफेसर के निर्देशन में वीना जी पीएचडी कर रही थी, अचानक एक दुर्घटना में डॉक्टर बुध देव जी का देहांत हो गया | वीना जी द्वारा बताया गया कि-मेरे पिताजी ने मेरा धैर्य बंधाया और डॉक्टर निगम को मुझको निर्देशित करने के लिए तैयार किया। यहां वीना जी अपने शोध कार्य में परिवार की पूरी पूरी सहभागिता को सहर्ष वर्णन करते हुए बताती हैं कि-उनके सभी भाइयों राजीव ,नीरज, अशोक व अनिल अपनी बहन के लिए अपना दायित्व बखूब समझते थे ,जैसे कि कॉलेज से लाना ले जाना और अन्य जरूरत का सामान लाकर देना आदि कार्यों में भाइयों के सहयोग को आप स्नेहपूर्ण ढ़ंग से वर्णन करती हैं।

आप ने बताया कि- मेरी हिम्मत और लगन की दाद देते हुए मेरे निर्देशक डॉ निगम जी कहते हैं कि- “मैंने सोचा तू तंग आकर छोड़ देगी पर तू ने हिम्मत नहीं हारी।” इसी बीच में वीना गर्ग जी की शादी अमरीश गर्ग जी से संपन्न हुई यहां मैं लेखिका
वीना गर्ग जी के पति अमरीश भाई जी की बढ़ाई किए बिना नहीं रह सकती, एक दिन जब मैं वीना जी के “गुड़िया” नामक बाल संग्रह के विमोचन की बधाई देने उनके घर गई तो जिस तरह दोनों पति पत्नी खुश हुए सच कहती हूँ उसके लिए मैं निशब्द हूं।
बताने योग्य व जरूरी बात यह कि- भाई अमरीश गर्ग जी ने जो अपनी धर्मपत्नी की बढ़ाई मुझसे कि वह बिरले पति ही होते हैं। और करें भी क्यों नहीं ,उनको पत्नी जो “वीना” मिली है ‘साक्षात सरस्वती’ जब तक वीना जी चाय बना कर लाई, तब तक मेरी उनके पति भाई अमरीश गर्ग जी से हुई उन्हीं के विषय में जो वार्ता होती रही उसी की एक झलक आप लोगों के सम्मुख रख रही हूं ,
भाई अंबरीष बोले -बहन जी वीना की शोध पत्र प्रकाशित हुआ है ,और उन्होंने बताया कि यह करीब 1983 की बात है जब गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में लड़कियों को मंच पर बुलाकर उपाधि नहीं दी जाती थी …तो बहन जी मेरे ससुर जी वीना के पिता ने वीना से प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखवाया कि सर मैं भी मंच से ही डिग्री लूंगी और मैं खुद को इसकी अधिकारिणी मानती हूं , तो बहन यह सौभाग्य वीना को कुछ प्रयासों के द्वारा प्राप्त हुआ और विश्वविद्यालय के इतिहास में वीना ही वह प्रथम महिला डॉक्टर वीना गर्ग हैं। जिन्हें मंच से उपाधि मिली।यह इतिहास बन गया ।
उन दिनों माननीय राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी दीक्षांत समारोह में पधारे यह सब बताते हुए अमरीश गर्ग जी की खुशी का अंदाजा लगा पाएं गर आप सब तो लगाइए मेरे शब्दों को पढकर …जो मैं उनके सामने बैठ महसूस कर रही थी वही भाव लिख रही हूँ।
और फिर वीना का दीक्षांत समारोह दूरदर्शन सभी समाचार पत्रों द्वारा प्रोग्राम कवर किया गया था बहन जी।
तभी वीना जी चाय लेकर आ जाती हैं, अमरीश भाई जी उनकी व अपने ससुर जी और तत्कालीन सरकार की बड़ाई करते रहे, और हम चाय का आनंद लेते रहे, अब चलने का समय आया तो फोटो भी लेना चाहिए… सोचकर हमने उनसे प्राप्त उनकी चार किताबों को हाथ में लेकर फोटो कराएं । और फिर मिलने का वादा करके चली।
आपकी शोध किताब मिली जिससे मैंने आपसे जरूर जरूर पढ़ने का वादा किया एक दो महीने के लिए ले ली पुस्तक क्योंकि शोध पुस्तक है कोई मजाक नहीं ।
दो कवियों की तुलनात्मक अध्ययन करने में जो साहस वीना जी ने किया… तो क्या मैं इसे पढ़ भी नहीं सकती, यह सोच कर मैं पुस्तक ले आई ।
यह खुद का खुद हौंसला बढा करके मैंने किताब पढ़ना शुरू किया हुआ है, करीब दो महीने होने वाले हैं और आज मैं इस पुस्तक पर आप सभी के समक्ष अपने विचार रख रख रही हूँ।

साहित्य की बात जब भी होगी प्राचीन कवियों के कवि कर्म का अवलोकन व अनुसंधान आवश्यक होगा। साहित्य में अभिव्यक्ति जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी ही महत्वपूर्ण है बिंब-योजना। इस शोध प्रबंध का पावन उद्देश्य भी यही है कि भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र के आधुनिक परिप्रेक्ष्य में दोनों प्राचीन कवियों भास एवं कालिदास की काव्य का अध्ययन किया जाए इस पुस्तक में भास एवं कालिदास के कथात्मक कल्पना विंबो का डॉ वीणा गर्ग जी द्वारा तुलनात्मक अध्ययन बड़े ही बेहतरीन तरीके से किया गया है ।
जरा भी नाम मात्र संदेह नहीं रखा है कि लेखिका साहिबा जी ने पूर्णतया पा संग्रहित अध्ययन दोनों ही प्रसिद्घ कवियों को उन्होंने पूर्वजों के प्रति निष्ठावान बताया है।दोनों एक ही परम्परा के रससिद्ध कवि हैं। ‘मेघदूत’ में मेघ को मोरमुकुटधारी श्रीकृष्ण का मनोहारी रूप देकर साम्य संसर्ग द्वारा अभूतपूर्व चमत्कार का आधान किया है ।यहाँ भक्ति भाव का मधुर सौन्दर्य है। मेघ का बिंब संस्कृत कवि कालिदास को अत्यंत प्रिय है। लेखिका संस्कृत कवि कालिदास की तुलना अंग्रेजी कवि पी बी शैली के समान कहां है कि दोनों कवियों ने मेघ को समान प्रेम किया मात्र कलात्मकता का ही अंतर है ….चेतन मन के दो बिंब बताए गए हैं डाॅ वीना जी द्वारा 1- स्मृति बिंब , 2 ‘कल्पना बिंब ।

यहां उन्होंने ध्यान इंगित कराते हुए कहा कि युंग के मतानुसार- जब पूर्ण ज्ञान अवचेतन मन से उभर कर चेतन मन की ओर अग्रसर होता है तो आद्यबिंब का निर्माण होने लगता है। कल्पना का पुट मिलने पर वह रोमानी हो जाता है ।
मेघ के कृष्ण वर्ण से संश्लिष्ट होकर वह नवीन चमत्कार को जन्म दे गया।
दृष्टि बिंब का ऐसा उचित प्रयोग जो भास के काव्य की विशिष्टता बन गया है पाश्चात्य वर्ती कवियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत ही रहा, भास की अनुपम काव्य शिल्प से लोकरंजन की कला में निपुण कल्पनाओं का चमत्कार द्रष्टव्य है-”
श्रीमान् विभूषणमनणि द्युतिरंजितांगो।
नक्षत्रमध्ये इव पर्वगतः शशांकः।।
बहुमूल्य आभरणों से खचित मणियों के मध्य दुर्योधन नक्षत्रों के मध्य में विराजमान् पूर्ण चंद्र की शोभा को धारण कर रहे हैं ।
नायक दुर्योधन के राजसी व्यक्तित्व की चमक धमक भास के इस मनोहारी वर्णन में मानों साकार हो उठी है। दृश्यबिम्ब का ऐसा उचित प्रयोग जो भास के काव्य को विशेषता बन गया है, पश्चात्यवर्ती कवियों के लिए प्रेरणा स्रोत भी रहा।
भास मानवीय भावों के मर्मस्पर्शी चित्रण में सिद्धहस्त कवि हैं। उन्होंने एक विवश पिता के ह्रदयगत वात्सल्य की मार्मिक अनुभूति को बड़ी कुशलता से पाठकों तक संप्रेषित किया है। स्मृति द्वारा उद्द्बुद्ध एवं कल्पना से परिपक्व ऐसे कल्पित बिंबो की सृष्टि द्वारा भास काव्य प्रसंग की संप्रेषणीयता में अतिशय वृद्धि करते हैं ।जैसे-
*जहाँ वसुदेव ने कंस के क्रूर कालपाश में पड़े हुए अपने शिशु कृष्ण को राहु के मुख में गए चंद्रमा से बिम्बित किया है।*
भाषा और कालिदास सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से विषयिगत सौंदर्य के समुपासक हैं। कालिदास की मृदुलता और भास की प्रसन्नता किस सह्रदय से छिप सकी है।
बिम्ब के अध्ययन के लिए सौंदर्य पक्ष का सुदृढ होना आवश्यक है।
सौंदर्य के साथ साथ वैरूप्य-बोध के लिए भी बिंब विधान की सार्थकता है।
एक जगह तो गंगा को कुछ ऐसे बिम्बित किया गया जैसे जहाँ गंगा को स्वर्गसोपानपंक्ति कहा गया है। गंगा पर उतरे हुए मेघ कितने सुंदर लगते हैं। जैसे गंगा तो आकाश से धरती तक स्वर्ग जाने की सीढी बन गई हो !!आह कितना काल्पनिक की सोचकर भी स्वर्ग का आभास हो रहा है । आगे लेखिका बताती हैं कि-
कलात्मक बिंबों की यही उपादेयता है।

पुस्तक षष्ठाध्यायों में विभक्त है –
*१- काव्य क्षेत्र/काव्य शिल्प दर्शाया गया है ।
*२- में इन्द्र को समर्पित है-
लेखिका कहती हैं कि- हमारा अभिप्राय संस्कृत साहित्य में भास एवं कालिदास के काव्य संदर्भ में उनको इंद्र विषयक पुराणानुप्राणित कल्पनाओं पर दृष्टिपात करना है तथा उनकी भली प्रकार व्याख्या करके इस विवेचना की दृष्टि से छानबीन करने का प्रयास करना है। बिम्ब विधान की दृष्टि से हम उन्हें आद्य बिम्ब अथवा कथात्मक कल्पना बिंब का आदि स्रोत कह सकते हैं।
*३– विष्णु पुराण का समग्र वर्णन किया गया है , जिस प्रकार क्षीर सागर मंथन के समय क्षीर सागर की उजली फुहारें विष्णु पर बरसी थी ,उसी प्रकार नगर की वयोवृद्ध महिलाओं ने रघु पर खीलों की वर्षा की।
*४- अर्द्धनारीश्वर के लिए -” एम आर काले महोदय ने श्रीमद् भागवत के आधार पर शिव के अष्टमूर्ति स्वरूप पर टिप्पणी की है और इसके अनुसार पंचतत्व, सूर्य ,चंद्र और यजमान के रूप में उनकी अष्ट मूर्ति बनाई है।
*५- कामदेव को समर्पित जिसमें काम- शरीर और व्यक्तित्व बिम्ब दर्शाए गये ,, सर्वप्रथम वेद में काम को देवता के रूप में स्वीकार किया गया है ।यहां काम प्रेम- मात्र के देवता नहीं अपितु सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति के अधिष्ठाता हैं । उन्हें उत्पन्न होने वालों में प्रथम कहा गया है।
*६-यम ,वरूण,दक्ष,सरस्वती,कुबेर ,ब्रह्म,चन्द्र एवं क्षीरसागर,गंगा यमुना स्वर्ग,मेरे ,अत्रि एवं चन्द्रमा, इन्द्र- शची- जयन्त,शिव पार्वती और स्कन्ध,लोकालोक, आकाश गंगा,अनुसूया,वसिष्ठ एवं अरुन्धती,त्रिशंकु,राम और रावण , अमृत ,धूमकेतु,मंदराचल,राहु द्वारा चन्द्रग्रहण ,नन्दन वन,राहु द्वारा चन्द्र ग्रहण, कल्पवृक्ष,क्रौञच- रंध्र।
*** यम के पर्याय हैं –धर्मराज: पितृपति: परेतराद, कृतांत: यमुनाभ्राता, डण्डधर : वैवस्वतःमहिषध्वज:औड़म्बर: आदि।
यही देव धर्म द्वारा प्रजाओं का रंजन करने के कारण धर्मराज अभिधान से भी अलंकृत है।
दोनों कवियों (भास एवं कालिदास)के बिम्ब विद्यान में घटना साम्य होते हुए भी वर्णन वैविध्य उल्लेखनीय है। विशेषतः कल्पना का चमत्कार सभी स्थलों पर सराहना के योग्य है।

सुनीता सोलंकी ‘मीना’
मुजफ्फरनगर उप्र

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