

क्या लिव इन रिलेशनशिप ठीक हैं ?
आजकल इसका कुछ ज्यादा ही फैशन चल पड़ा है। आजकल के बच्चे पश्चिमी सभ्यता से बहुत अधिक प्रभावित हैं। वे केवल अपने कैरियर के विषय में सोचते हैं। कैरियर बनाते- बनाते शादी की उम्र निकल जाती है। वैसे भी आजकल उम्र निकले या न निकले, इंस्टाग्राम पर बच्चे आभासी दुनिया के पुरुषों से दोस्ती कर लेते हैं और धीरे-धीरे प्रेम की पींग भी बढ़ने लगती है।फिर धीरे- धीरे वह प्रेम इतना परवान चढ़ता है कि घर से भागकर लिव-इन में रहना शुरू कर देते हैं, क्योंकि लिव इन रिलेशनशिप में रहने से कोई जिम्मेदारी नहीं होती। जब दिल चाहे, तोड़ दो। ऊपर से देश का चौथा स्तंभ प्रिंट मीडिया जो ऐसी खबरों का प्रकाशन करता है जिसे पढ़कर आजकल की पीढ़ी को प्रोत्साहन मिलता है। दिसम्बर 2022 में अखबार में पढ़ा कि एक 40 वर्षीय पुरुष का अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद का केस चल रहा था और वह किसी विधवा के साथ 12 वर्षों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था।उस रिलेशन से उनके तीन बच्चे हुए। जिस दिन कोर्ट का फैसला आया, उससे अगले दिन ही दोनों ने अपने बच्चों की मौजूदगी में विवाह कर लिया। ऐसी एक अन्य खबर और भी आई थी कि स्त्री पुरुष वर्षों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे थे। नाती-पोते तक हो चुके थे। उसके बाद उन्होंने अपने बच्चों और नाती-पोतों की मौजूदगी में शादी की। यह सब पढ़कर बच्चों में क्या खाक संस्कार आयेंगे। वे तो वैसे ही पाश्चात्य संस्कृति के दीवाने हैं जहाँ हर चीज पर बाजारवाद हावी है।वहाँ विवाह को पवित्र बंधन नहीं माना जाता।स्त्री पुरुष का शादी का भी शायद अनुबंध होता है। जब एक दूसरे से मन भर जाए, छोड़ दो और अन्य किसी से रिश्ता बना लो। ऊपर से सोने में सुहागा तो नहीं कहूँगी,आग लगे ऐसे कानून को, अब लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले बच्चों के लिए एक कानून बन गया है कि उनको अपने अवैध माता- पिता दोनों की संपत्ति में से भी अधिकार मिलेगा। ऐसा होगा तो हर कोई अवैध संबंध बनाने से क्यों हिचकेगा। कोर्ट ने दलील दी कि इसमें नाजायज बच्चों का क्या कसूर है। मानते हैं कि नाजायज बच्चों का कोई कसूर नहीं है लेकिन ऐसे बच्चों को जायज भी नहीं कहा जा सकता। नाजायज बच्चे वे होते हैं जिस लड़की के साथ जबरदस्ती दुष्कर्म किया जाता है और वह गर्भवती हो जाती है। क्योंकि वह अपनी इच्छा से संबंध स्थापित नहीं करती। ऐसे बच्चों को फिर अनाथ आश्रम या पालनाघर वगैरह में रखा जाता है। लेकिन लिव इन रिलेशनशिप द्वारा पैदा हुए बच्चों को माता पिता की संपत्ति से अधिकार मिलेगा तो फिर ऐसे किस्से रुकने वाले नहीं हैं। और सम्पत्ति में अधिकार देना है तो जब उनके माता पिता का लिव इन में रहने का फैसला उनका अपना था तो कोर्ट को अपनी टाँग अड़ाने की क्या जरूरत है।
कई बार लिव-इन में रहने वाले ऐसी एहतियात बरतते हैं कि बच्चे पैदा ही न हों क्योंकि वे बच्चों की जिम्मेदारी से बचने के लिये ही तो लिव इन में रहते हैं। लेकिन कभी-कभी यह वासना की भूख इतनी बलवती हो जाती है कि सारी एहतियात रखी रह जाती है। वैसे भी जब वासना सर पर चढ़कर बोलती है, तब किसी भी बात का होश कहाँ रहता है।
*लिव इन रिलेशनशिप समाज के लिए एक धब्बा है। बेशक कानून लिव इन रिलेशनशिप को मान्य करार दे लेकिन भारतीय समाज अभी भी इन संबंधों को अच्छी नजर से नहीं देखता।* ऐसे लोगों के संबंधों को लेकर बातें एवं फब्तियाँ कसने का दौर खत्म नहीं होता। छोटे शहरों में जहाँ लोग एक दूसरे को जानते हैं, इस तरह के रिश्ते में रहने वालों का जीना मुहाल हो जाता है। छोटे शहरों में ही क्यों,यदि आपके आस-पास कोई ऐसा जोड़ा रह रहा हो तो क्या आप उस रिश्ते को मान्यता देंगे?मैं तो कभी नहीं।
ऐसे संबंध में रह रहा कोई व्यक्ति यदि बाद में विवाह करना भी चाहे तो उसके लिए और मुश्किल खड़ी हो जाती है। उसका बीता समय उसके वर्तमान के सामने आकर खड़ा हो जाता है।विवाह एक पवित्र अवधारणा है। दो आत्माओं का मिलन है जिसमें केवल पति पत्नी ही दांपत्य सूत्र में नहीं बंधते, अपितु वधू पक्ष और वर पक्ष के संबंधी भी उसमें शामिल होकर एक बहुत बड़े समाज की परिकल्पना के परिचायक बनते हैं। यही लोग आपस में एक दूसरे के सुख दुख के सांझेदार भी होते हैं।दम्पति में आपसी मतभेद होने पर समझा बुझा भी सकते हैं क्योंकि जहाँ दो बर्तन होंगे तो खटकेंगे जरूर। मतभेद होना भी लाजिमी है, लेकिन जहाँ कोई लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा होगा तो दोनों केवल अपनी दुनिया में मस्त रहेंगे। समाज से उनका कोई लेना-देना नहीं होगा।जब एक दूसरे से मन भर जाएगा तो एक दूसरे को छोड़ देंगे। *लेकिन क्या ऐसी रिलेशनशिप से एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो पाएगा?* *समाज गर्त में चला जाएगा। हमारे नैतिक मूल्यों का ह्रास हो जाएगा और जिस समाज के कोई नैतिक मूल्य नहीं होते, उस समाज का पतन तो अवश्यंभावी है,* क्योंकि बच्चों को संस्कार कौन देगा? पहली बात तो ऐसे लोग बच्चे पैदा ही नहीं करेंगे। यदि गलती से हो गए तो बच्चों को आया के भरोसे छोड़ देंगे। वह आया बच्चों को अफीम खिलाकर सुला रही है या पीछे से अपने आशिक को बुलाकर इश्क मिजाजी कर रही है या उल्टी-सीधी मूवी लगा रही है जिससे बच्चों में भी एक ऐसी मानसिकता पैदा हो रही है कि वे बड़े होकर घृणित कर्मों में लिप्त हो रहे हैं।
*लिव इन रिलेशनशिप विवाह जैसा जन्म -जन्म का बंधन नहीं है।* ऐसे में दूसरे पार्टनर के मन में हमेशा साथी के छोड़ जाने का खटका बना रहता है। ऐसे लोगों के रिलेशनशिप की वजह से उनके पूरे परिवार को तनाव झेलना पड़ता है क्योंकि इस रिश्ते को समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। देखा भी नहीं जाना चाहिए। लिव इन में यदि पार्टनर बुरा साबित होता है तो रिश्ता टूटने के बाद दोनों को यह बात लंबे समय तक सालती रहेगी और किसी दूसरे पर भरोसा करना मुश्किल होगा। ऐसा रिश्ता टूटने पर महिला को अधिक शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक तनाव एवं अवसाद झेलना पड़ता है। इस तरह के रिश्ते से पैदा हुए बच्चों को समाज में तिरस्कार ही झेलना पड़ता है। ऐसे में वे तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। शादी के बाद रिश्ते में जो आदर सम्मान देखने को मिलता है, वह लिव इन में मुश्किल से देखने को मिलता है।एक कड़वा सच यह भी है कि लिव इन रिलेशनशिप के केवल 10% मामले ही शादी तक पहुँच पाते हैं। 90% के भाग्य में टूटना ही बदा होता है।
हमारे समाज में बिना विवाह किये एक युवक युवती के एक ही कमरे में साथ रहने को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता लेकिन इन दिनों सभी बड़े शहरों में लिव इन रिलेशनशिप खूब पनप एवं फल फूल रही है। खास बात यह है कि समाज बेशक उन्हें तिरछी नजर से देखे, लेकिन कानून उनके साथ खड़ा है। बहुत से मामलों में तो कोर्ट ने लिव-इन में रहने वाले जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने के भी निर्देश दिए हैं। जिन्हें इस रिश्ते की वजह से अपने परिजनों अथवा समाज के किसी वर्ग से खतरा था। आज से करीब 48 साल पहले सन 1978 में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी तौर पर सही कहा। जस्टिस अय्यर ने कहा-” यदि पार्टनर लंबे समय तक पति पत्नी की तरह साथ रहे हैं तो पर्याप्त कारण है कि इसे विवाह माना जाए। उन्होंने आगे लिखा कि इसे चुनौती दी जा सकती है। *लेकिन यदि यह संबंध विवाह नहीं था तो इसे साबित करने का दायित्व उस पक्ष पर होगा जो इसे शादी मानने से इंकार कर रहा है।* जस्टिस अय्यर ने चाहे जो कुछ भी कहा हो, लेकिन हमारे समाज में विवाह कभी एक धार्मिक कृत्य हुआ करता था लिहाजा यह एक कुकृत्य फैसला था। रही सही कसर 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में फैसला देते हुए कहा था कि वयस्क होने के बाद व्यक्ति किसी के भी साथ रहने अथवा शादी करने के लिए स्वतंत्र है। कोर्ट ने साफ किया था कि कुछ लोगों की निगाह में अनैतिक माने जाने के बावजूद ऐसे रिश्ते में रहना कोई अपराध नहीं। इस बात से स्पष्ट पता लगता है कि ऐसे लोग शायद स्वयं ऐसे रिश्ते में बंधे हुए होंगे तभी तो इस तरह का फैसला दिया। वरना कैसे इस तरह के फैसले देते और इन्हें जायज मानते? कोर्ट का कहना है कि यह कानून लिव इन रिलेशनशिप के तहत दिए गए राइट टू लाइफ यानी जीने के अधिकार की श्रेणी में करार देता है। *वह कहता है कि लोग बेशक इस संबंध को सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की कसौटी पर कसें, लेकिन यह दो लोगों की निजी जिंदगी से जुड़ा मसला है।इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के चश्मे से देखने की आवश्यकता है। सामाजिक नैतिकताओं की धारणाओं से नहीं।*
मेरा कहना है यदि उनका व्यक्तिगत मसला है तो यह भी उनका व्यक्तिगत मसला होना चाहिए कि पिता अपनी संपत्ति में उस संतान को अधिकार दे या न दे।
ऐसा कानून बनने से अब तो यह हालत हो गई है कि कई बार पति पहले से ही विवाहित है, पत्नी जीवित है या पत्नी विवाहित है और पति जीवित है, इसके बावजूद दोनों लिव इन में भी रह रहे हैं और विवाहित जोड़े अपने पति और पत्नी से तलाक भी नहीं ले रहे और अखबार इन खबरों से रंगा पड़ा रहता है कि पत्नी ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी या पति ने प्रेमिका के साथ मिलकर पत्नी की हत्या कर दी। *ये जज कहाँ से ऐसे-ऐसे कानून बना देते हैं जिनका कोई औचित्य नहीं है। जो समाज में अनाचार फैलाने वाले हैं। जो हमारे नैतिक मूल्यों को ठेस पहुँचाने वाले हैं।*
*शुक्र है कि एक विद्वान जस्टिस कौशल जयन्त ठाकुर एवं दिनेश पाठक की खंडपीठ ने कहा कि वे ऐसी याचिका स्वीकार नहीं कर सकते, जो समाज में अवैध संबंधों को बढ़ावा दे।* यह उन्होंने उस संबंध में की है जब एक ऐसे जोड़े की ओर से सुरक्षा याचिका दायर की गई थी जिसमें से एक शादीशुदा होने के बावजूद किसी अन्य महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा था।शुक्र है कि भारत में इस संबंध में संसद में कोई कानून नहीं बनाया गया है। अभी तो सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस संबंध में दिए गए आदेश को ही कानून मान लिया गया है।
अब कोर्ट ने कुछ अलग प्रावधान किए हैं। पति और पत्नी दोनों के खिलाफ शिकायत के कुछ नियम बनाए हैं। यदि कोई पति या पत्नी तलाक लिए बगैर लिव इन रिलेशनशिप में रहता है तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा, जिसे सात साल तक बरकरार रखा जा सकता है। साथ ही अर्थदंड से दंडित किया जाएगा। डीएम हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस अशोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने पति से तलाक बगैर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली एक महिला की सुरक्षा याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि इस तरह के संबंध व्यभिचारी जीवन के अंतर्गत आते हैं। यह लिव इन रिलेशनशिप के दायरे में नहीं आते। इसी तरह के एक मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने विवाहित व्यक्ति के साथ रह रही एक विधवा को पुलिस सुरक्षा से वंचित कर दिया। उसने कहा- याचिकाकर्ताओं के बीच ऐसा संबंध लिव इन रिलेशनशिप के दायरे में नहीं आता बल्कि इस तरह के रिश्ते विशुद्ध रूप से अवैध एवं असामाजिक हैं। *जय हो ऐसे जजों की।*
लिव इन में रहें अपनी मर्जी से। परिवार की इज्जत धूल में मिला दें। फिर इन्हें सुरक्षा भी चाहिए।कमाल है।
बॉलीवुड में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर कई फिल्में बनी हैं। हम सभी जानते हैं कि फिल्में समाज का आईना होती हैं। वह समाज की अच्छाइयों और बुराइयों को बड़े पर्दे पर दिखाने के साथ ही कई बार समाज में चल रहे स्टैंड पर भी फोकस करती हैं। इसी तरह लिव इन रिलेशनशिप को आधार बनाकर भी कई फिल्में बनाई गई हैं। सत्यानाश हो इन बॉलीवुड वालों का। ऐसी फिल्मों को देख देख कर लोगों को ज्यादा प्रोत्साहन मिलता है। बॉलीवुड की दुनिया पर्दे पर जितनी ग्लैमरस नजर आती है, उतनी ही असल जिंदगी में भी है। फिल्म इंडस्ट्री में विभिन्न किरदारों का रोल अदा करते करते कभी-कभी उनके यह रिश्ते इतने मजबूत लगने लगते हैं कि फिल्मों में एक्टिंग करने वाले यह हीरो हीरोइन असल जिंदगी में लिव-इन में रहने लगते हैं।ज्यादा लोगों के नाम तो मुझे नहीं मालूम, लेकिन नवाब पटौदी और अभिनेता सैफ अली खान की लाइफ को कौन नहीं जानता। फिलहाल सैफ अली खान और करीना कपूर खान अपने दोनों बेटों के साथ हैप्पी मैरिड लाइफ इंजॉय कर रहे हैं लेकिन इससे पहले सैफ अमृता सिंह से शादी कर चुके थे। अमृता से तलाक के बाद एक्टर ने करीना के साथ लिव-इन में रहना शुरू कर दिया था और फिर शादी रचाई थी। इसी तरह से आमिर खान किरण राव के प्यार में ऐसी पड़ गई थी कि दोनों एक-दूसरे के साथ लिव-इन में रहने लगे थे। इसके बाद दोनों ने शादी की।
हमारे कोई परिचित हैं।एक बार दिल्ली आए हुए थे।बातों बातों में वो बोले-” हमारे पड़ौस में एक विधवा और एक विधुर हैं।दोनों अकेले हैं।दोनों के बच्चे बाहर रहते हैं। लोगों ने राय दी है कि अकेले जिंदगी काटना बहुत मुश्किल है, इसलिए दोनों ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया है।”
मैंने कहा- “क्या साथ रहने के लिए लिव इन रिलेशनशिप में रहना ही जरूरी हो। माना कि अकेले रहना बड़ा मुश्किल काम है और खासकर बुढ़ापे में एकांत इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है।व्यक्ति के पास किसी प्रकार का कोई शौक हो तो उसके सहारे जिन्दगी बसर हो जाती है लेकिन कोई शौक न हो तो जीवन व्यतीत करना बहुत मुश्किल है। लेकिन उसके लिए जरूरी तो नहीं है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहकर समाज को एक गलत दिशा दिखाई जाए। वो दोनों विवाह भी तो कर सकते हैं। दोनों को एक दूसरे का सहारा मिल जाएगा।” *उनका कहना था कि समाज क्या कहेगा?* तब मैंने कहा कि जब वो लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे, तब क्या समाज कुछ नहीं कहेगा। यह तो एक तरह से समाज में गंदगी फैलाने वाला काम है। आज की पीढ़ी पर उसका क्या असर पड़ेगा, कभी सोचा है? वह ऐसे रिलेशन में रहकर क्या मिसाल कायम करेंगे, कभी इस पर गौर किया है? शुक्र है कि बात बुद्धि में आई और बाद में उन्होंने बताया कि उन दोनों का बाकायदा विवाह करवा दिया है।
संक्षेप में इतना कि मैं *लिव इन रिलेशनशिप के सख्त खिलाफ हूँ* और शायद जो भी एक स्वस्थ समाज का निर्माण चाहता है, वह इस बात से सहमत होगा।
–राधा गोयल
विकासपुरी,दिल्ली

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
