काव्य : चंद्रतिलक – ब्रह्मानंद गर्ग सुजल जैसलमेर

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चंद्रतिलक

तिरंगा शान से उड़ता अब चांद पर।
जन गन मन गूंजता अब चांद पर।

बरसों की मेहनत से मुकाम मिला है,
हिंदुस्तान के निशां अमिट अब चांद पर।

सलाम देश के महान वैज्ञानिकों तुम्हें,
फहरा दिया ध्वज अपना चांद पर।

जहाँ कोई नहीं पहुंचा वहाँ दस्तक दी,
सबसे पहले भारत विजय चांद पर।

ज्ञान विज्ञान की ये जय है सुजल,
शिक्षा ने किया ख्वाब पूरा चांद पर।

ब्रह्मानंद गर्ग सुजल
जैसलमेर

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